देश की मिटटी से जुडे लोगों का मंच.-- नई तकनीक स्वीकारने के साथ ही विश्व को भारत की वो सौगात /उन महान मूल्यों की रक्षा, हर हाल करना, व्यापक मानवीय आधार है द्वार खुले रखने का अर्थ अँधानुकरण/प्रदुषण स्वीकारने की बाध्यता नहीं(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpan पर इमेल/चैट करेंसंपर्क सूत्र -तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, 09999777358

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बिकाऊ मीडिया -व हमारा भविष्य

: : : क्या आप मानते हैं कि अपराध का महिमामंडन करते अश्लील, नकारात्मक 40 पृष्ठ के रद्दी समाचार; जिन्हे शीर्षक देख रद्दी में डाला जाता है। हमारी सोच, पठनीयता, चरित्र, चिंतन सहित भविष्य को नकारात्मकता देते हैं। फिर उसे केवल इसलिए लिया जाये, कि 40 पृष्ठ की रद्दी से क्रय मूल्य निकल आयेगा ? कभी इसका विचार किया है कि यह सब इस देश या हमारा अपना भविष्य रद्दी करता है? इसका एक ही विकल्प -सार्थक, सटीक, सुघड़, सुस्पष्ट व सकारात्मक राष्ट्रवादी मीडिया, YDMS, आइयें, इस के लिये संकल्प लें: शर्मनिरपेक्ष मैकालेवादी बिकाऊ मीडिया द्वारा समाज को भटकने से रोकें; जागते रहो, जगाते रहो।।: : नकारात्मक मीडिया के सकारात्मक विकल्प का सार्थक संकल्प - (विविध विषयों के 28 ब्लाग, 5 चेनल व अन्य सूत्र) की एक वैश्विक पहचान है। आप चाहें तो आप भी बन सकते हैं, इसके समर्थक, योगदानकर्ता, प्रचारक,Be a member -Supporter, contributor, promotional Team, युगदर्पण मीडिया समूह संपादक - तिलक.धन्यवाद YDMS. 9911111611: :

Monday, June 21, 2010

आदरणीय पाबला जी

आज लम्बे समय के बाद मेल खोली तो खाते को खोले जाने की सूचना मिली! आदरणीय पाबला जी क्या इस बारे कुछ पता चल सकता है! देश की मिटटी की सुगंध, भारतचौपाल!

Friday, June 18, 2010

संघ का सच

-संजीव कुमार सिन्‍हा
हम देखते हैं कि 1885 में स्थापित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जहां आंतरिक कलह और परिवारवाद के कारण दिन-प्रतिदिन सिकुड़ती जा रही है, वहीं 1925 में दुनिया को लाल झंडे तले लाने के सपने के साथ शुरू हुआ भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन आज दर्जनों गुटों में बंट कर अंतिम सांसें ले रहा है। इनके विपरीत 1925 में ही स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दिनोंदिन आगे बढ़ रहा है।
आज यदि गांधी के विचार-स्वदेशी, ग्राम-पुनर्रचना, रामराज्य-को कोई कार्यान्वित कर रहा है तो वह संघ ही है। महात्मा गांधी का संघ के बारे में कहना था- ‘आपके शिविर में अनुशासन, अस्पृश्यता का पूर्ण रूप से अभाव और कठोर, सादगीपूर्ण जीवन देखकर काफी प्रभावित हुआ’ (16.09.1947, भंगी कॉलोनी, दिल्ली)।
आज विभिन्न क्षेत्रों में संघ से प्रेरित 35 अखिल भारतीय संगठन कार्यरत हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, वैकल्पिक रोजगार के क्षेत्र में लगभग 30 हजार सेवा कार्य चल रहे हैं। राष्ट्र के सम्मुख जब भी संकट या प्राकृतिक विपदाएं आई हैं, संघ के स्वयंसेवकों ने सबसे पहले घटना-स्थल पर पहुंच कर अपनी सेवाएं प्रस्तुत की हैं।
संघ में बौध्दिक और प्रत्यक्ष समाज कार्य दोनों समान हैं। संघ का कार्य वातानुकूलित कक्षों में महज सेमिनार आयोजित करने या मुट्ठियां भींचकर अनर्गल मुर्दाबाद-जिंदाबाद के नारों से नहीं चलता है। राष्ट्र की सेवा के लिए अपना सर्वस्व होम कर देने की प्रेरणा से आज हजारों की संख्या में युवक पंचतारा सुविधाओं की बजाय गांवों में जाकर कार्य कर रहे हैं। संघ के पास बरगलाने के लिए कोई प्रतीक नहीं है और न कोई काल्पनिक राष्ट्र है। संघ के स्वयंसेवक इन पंक्तियों में विश्वास करते हैं-’एक भूमि, एक संस्कृति, एक हृदय, एक राष्ट्र और क्या चाहिए वतन के लिए?’
संघ धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करता। इसके तीसरे सरसंघचालक बाला साहब देवरस ने उद्धोष किया कि ‘अस्पृश्यता यदि पाप नहीं है तो कुछ भी पाप नहीं है।’ बाबा साहब भीमराव आंबेडकर का कहना था- ‘अपने पास के स्वयंसेवकों की जाति को जानने की उत्सुकता तक नहीं रखकर, परिपूर्ण समानता और भ्रातृत्व के साथ यहां व्यवहार करने वाले स्वयंसेवकों को देखकर मुझे आश्चर्य होता है’ (मई, 1939, संघ शिविर, पुणे)।
संघ की दिनोंदिन बढ़ती ताकत और सर्वस्वीकार्यता देखकर उसके विरोधी मनगढ़ंत आरोप लगाकर संघ की छवि को विकृत करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन हमें स्वामी विवेकानंद का वचन अच्छी तरह याद है: ‘हर एक बड़े काम को चार अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है: उपेक्षा, उपहास, विरोध और अंत में विजय।’ इसी विजय को अपनी नियति मानकर संघ समाज-कार्य में जुटा हुआ है।देश की मिटटी की सुगंध, भारतचौपाल!

भारत व अमेरिका की दुर्घटनाएं (राष्ट्रीय चरित्र)

तिलक राज रेलन
एक (दुर)घटना 1984 में भारत के भोपाल की, दूसरी 2010 में अमेरिका की, व हमारे नेतृत्व के चरित्र का खुला चित्रण
Comment: Two tragedies, two very different responses
अमरीकी  राष्ट्रपति ओबामा ने अपने देश के लिए ब्रिटिश पेट्रोलियम के क्षे.प्र. कार्ल हेनरिक स्वैन बर्ग की गर्दन दबाई!
ओबामा के उबाल का कमाल: अमेरिका की समुद्र तटीय सीमा पर ब्रिटिश पेट्रोलियम के साथ सहयोगी ट्रांस ओशियन व हैल्लीबर्टन सभी द्वारा तेल निकासी में असावधानी हुई - दुर्घटना घटी ! इसमें 11 लोगों की मृत्यु हुई साथ ही समुद्री कछुए , पक्षी , डालफिन भी मारे गए ! अमेरिकी पर्यटन व मछली उद्योग को भी क्षति पहुंची !इस पर अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा उबल पड़े! विदेशी कं. ब्रि.पै. के क्षेत्र के प्रमुख को बुला लिया (व्हाइट हॉउस)! अमेरिका की विदेश नीति व विदेशियों के प्रति उनका व्यवहार सदा ही मेरी आलोचना का पात्र रहे हैं किन्तु उनके नेता अपने देश व देश वासियों के हितों  का समझौता   नहीं  करते  बल्कि  उनके हित  में करार  करने  को बेकरार  होते  हैं! उनका व्यक्तिगत चरित्र भले ही गिर जाये राष्ट्रीय चरित्र सदा प्रदर्शित  हुआ है!
ओबामा  ने कहा था मैं उनकी गर्दन पर पैर रख कर प्रतिपूर्ति निकलवाऊंगा ,उसे पूरा कर दिखाया! त्रासदी के 2 माह में करार हो गया (अधिकारों का सदुपयोग अपने लिए नहीं देश के लिए)20 अरब डालर(1000 अरब रु.) - दोष उनके अपने लोगों का भी था किन्तु उन्हें साफ बचा कर ब्रि.पै. पर पूरा दोष जड़ते हुए करार करने में सफल होने पर कोई उंगली नहीं उठी!
Comment: Two tragedies, two very different responses
विश्व की सर्वाधिक भयावह औद्योगिक त्रासदी के पीड़ितों को अभी तक न्याय नहीं !
भोपाल गैस त्रासदी:- वैसे तो 1984 में 2 प्रमुख दुखद घटनाएँ घटी, किन्तु यहाँ एक की तुलना उपरोक्त से की जा सकती है चर्चा में ली जाती है! वह है भोपाल गैस त्रासदी --बताया जाता है इसमें 15000 सीधे सीधे दम घुटने से अकाल मृत्यु का ग्रास बने, 5 लाख शारीरिक विकार व भयावह कष्टपूर्ण अमानवीय यंत्रणा/त्रास /नरक भोगते हुए  मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे हैं ! तो उनकी अगली पीडी भी इसे भोगने को अभिशप्त होगी! इससे वीभत्स और क्या होगा? इस सब के लिए उनका अपना कोई दोष नहीं था किन्तु दूसरों के दोष का दंड इन्हें भुगतना पड़ा ! क्यों? पशु पक्षियों का हिसाब हम तब लगाते यदि मानव को कीड़े मकोड़े से अधिक महत्व दे पाते? उद्योग/व्यवसाय की हानी तब देखते जब अपनी तिजोरियां स्विस खातों तक न भरी जातीं! एंडरसन को दिल्ली बुला कर कड़े शब्दों में देश/ जनहित का करार करने का दबाव बनाना तो दूर दिल्ली से आदेश भेजा गया उसे छोड़ने का, वह भी पूरे सम्मान के साथ?
बात इतनी ही होती तो झेल जाते, उनका चरित्र देखें, धोखा अपनों को दिया और नहीं पछताते ?

कां. का इतिहास देखें एक परिवार की इच्छा के बिना पत्ता नहीं हिलता, अर्जुन सिंह यह निर्णय लेने के सक्षम नहीं, दिल्ली से आदेश आया को ठोस आधार मानने के अतिरिक्त ओर कुछ संकेत नहीं मिलता? उस शीर्ष केंद्र को बचाने के प्रयास में भले ही बलि का बकरा अर्जुन बने या सरकारी अधिकारी?
प्रतिपूर्ति की बात 14  फरवरी, 1989 भारत सरकार के माध्यम 705 करोर रु. में गंभीर क़ानूनी व अपराधिक आरोप से कं. को मुक्त करने का दबाव निर्णायक परिणति में बदल गया! 15000 के जीवन का मूल्य हमारे दरिंदों ने लगाया 12000 रु. मात्र प्रति व्यक्ति 5 लाख पीड़ित व वातावरण के अन्य जीव- जंतु , अन्य हानियाँ = शुन्य? कितने संवेदन शुन्य कर्णधारों के हाथ में है यह देश?
  दोषी कं अधिकारिओं को दण्डित करने के प्रश्न पर भी 1996 में विदेशी कं को गंभीरतम आरोपों से बचाने हेतु धारा 304 से 304 ए में बदलने का दोषी कौन? फिर वह भी मुख्य आरोपी को भगा कर अन्य को मात्र 2 वर्ष का कारावास,मात्र 1 लाख रु. का अर्थ दंड क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं कि मुख्य अपराधी कि जगह  बने बलि के बकरे को पहले ही आश्वस्त किया गया हो बकरा बन जा न्यूनतम दंड अधिकतम गुप्त लाभ?
 एंडरसन के जाने के बाद इतनी सफाई से उसके हितों कि रक्षा करने वाला कौन? जिसके तार ही नहीं निष्ठा भी पश्चिम से जुडी हो? स्व. राजीव गाँधी के घर ऐसा कौन था? अपने क्षुद्र स्वार्थ त्याग कर देश के उन शत्रुओं की पहचान होनी ही चाहिए।
इसे किसी भी आवरण से ढकना सबसे बड़ा राष्ट्र द्रोह होगा? अब ये प्रमाण सामने आ चुके हैं कि 3 दिसंबर,1984 को अंकित कांड की प्राथमिकी  और 5 दिसंबर को न्यायलय  के रिमांड आर्डर में भारी परिवर्तन  किया गया। इतना सब होने के बाद भी हमारी बेशर्म राजनीति हमें न्याय दिलाने का आश्वासन दे रही है? जल्लादों के हाथ में ही न्याय की पोथी थमा दी गयी है। स्पष्ट  है वे जो भी करेंगें वह जंगल का ही न्याय होगा? उस समय हम चूक गए पर अबके किसी मूल्य पर चूकना नहीं हैअपने व अगली पीडी के भविष्य के लिए? लड़ते हुए हार जाते तो इतना दुःख न था जा के दुश्मन से मिल गए ऐसे निकले?
देश की मिटटी की सुगंध, भारतचौपाल!