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Sunday, March 3, 2013

इक्कीसवीं शताब्दी हमारी होगी: भाजपा

इक्कीसवीं शताब्दी हमारी होगी: भाजपा 
युदस | नयी दिल्ली, 2-3,  मार्च 2013 | आगामी वर्ष होने वाले आम चुनावों से पूर्व तथा भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के नए कार्यकाल में पार्टी की प्रथम राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सरकार बनाने के लिए सक्षम दिखी  भाजपा ने शुक्रवार को कहा कि बीसवीं सदी भले ही कांग्रेस की रही हो किन्तु इक्कीसवीं शताब्दी उसकी होगी। 
 राजनाथ सिंह ने संबोधित करते हुए कहा कि भाजपा सरकार और पार्टी देश में सुशासन, विकास और सुरक्षा के लिए समर्पित रहेगी। 
राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बाद पार्टी की दो दिवसीय राष्ट्रीय परिषद की बैठक में राजनाथ के पार्टी के पुन: अध्यक्ष बनाए जाने पर औपचारिक स्वीकृति के साथ, आर्थिक व राजनैतिक प्रस्तावों सहित अन्य कई महत्त्व पूर्ण निर्णय लिए गए।  
पार्टी अध्यक्ष ने दावा किया कि संप्रग सरकार हर मोर्चे पर विफल रही  है और उसके कार्यकाल में भ्रष्टाचार, कुशासन तथा अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन से देश की साख को विश्व भर में धक्का लगा है ऐसे में 2014 का समय भाजपा का होगा। राजनाथ ने कहा कि संप्रग के शासन में इस वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही में जीडीपी 4.3 के स्तर पर रही और देश में भाजपा शासित प्रदेशों के सुशासन के कारण ही भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की साख थोड़ी बची हुई है अन्यथा यह और नीचे चली जाएगी। राजनाथ ने बैठक में अभिभावक के रूप में पार्टी का मार्गदर्शन करने में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के अस्वस्थ होने और उनकी अनुपस्थिति में वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की पस्थिति का उल्लेख भी किया

शनिवार को नई दिल्ली में शुरू हुई भाजपा की राष्ट्रीय परिषद के उल्लेख के विशेष बिन्दू :
तालियों की गड़गड़ाहट में परिषद के 2200 के आसपास सदस्यों ने मोदी का विशेष स्वागत किया। 
उनके अच्छे शासन की प्रशंसा अम्रीका व् यूरोप सभी ने की विकास मॉडल की अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी सराहना की गई है।
* भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी का निर्णय संसदीय बोर्ड द्वारा उचित समय पर लिया जाना चाहिए।
"मुद्रास्फीति की दर और भ्रष्टाचार यूपीए सरकार की पहचान बन गए हैं।
* सुशासन के मुद्दे पर उत्साहित भाजपा ने कांग्रेस नीत संप्रग को काराविदेश नीति, और आंतरिक सुरक्षा और आतंकवाद, अर्थव्यवस्था में विफल और भ्रष्टाचार में लिप्त संप्रग सरकार को राने का आवाहन किया।  
* सरकार में इच्छा शक्ति नहीं और इन मुद्दों से निपटने के लिए दृढ़ संकल्प का अभाव है।
* मोदी और उसके मध्य प्रदेश समकक्ष शिवराज सिंह चौहान ने संसदीय बोर्ड में शामिल किया जा सकता है। 
भाजपा ने सत्ता में आने पर एक अलग राज्य के रूप में उचित समय में तेलंगाना गठन के लिए वादा किया। 
विश्वास है कि इस वर्ष दो राज्यों में जब विधानसभा चुनाव के बाद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके छत्तीसगढ़ समकक्ष रमन सिंह का नाम भी लगातार तीन चुनावों में जीत का हो जाएगा।
* बहु - ब्रांड खुदरा क्षेत्र में नीति के रूप में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति छोटे व्यापारी  को आघात है, "यह आर्थिक उथल - पुथल लाएगा, जिसे रोकना व हटाना चाहिए। 
* राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, दिल्ली और झारखंड, के आगामी विधानसभा चुनावों तथा 2014 के सामान्य चुनावों में अच्छी तरह से एकजुट होकर लड़ाई के लिए तैयारविजय की मुद्रा में दिखी भाजपा।
** आर्थिक संकल्प ** राजनेतिक संकल्प 
बैठक से पूर्व पार्टी प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने संवाददाताओं को बैठक की जानकारी देते समय राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली का फोन टैप किये जाने के मामले में आज उच्च सदन में गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि गृहमंत्री के बयान से भाजपा पूरी तरह संतुष्ट नहीं है किन्तु उन्होंने आश्वासन दिया है कि इस मामले में तेज जांच कराई जाएगी। प्रसाद ने कहा कि जेटली और अन्य लोगों का पिछले 6.7 महीने में फोन टैप किये जाने का मामला गंभीर और दुर्भाग्यपूर्ण है तथा पार्टी सरकार से जानना चाहती है कि यह काम किसके कहने पर और कौन कर रहा था। पार्टी शिंदे के उत्तर की प्रतीक्षा करेगी
कार्यकारिणी की बैठक में राजनाथ ने अपने से पूर्व अध्यक्ष रहे अध्यक्ष नितिन गडकरी के कार्यकाल का उल्लेख करते हुए कहा कि पूर्व अध्यक्ष के नेतृत्व में पार्टी ने जो सुदृद्ता प्राप्त की है वह उसे आगे बढ़ाने का काम करेंगे
गडकरी ने भी अपने संबोधन में विश्वास जताया कि राजनाथ 
के नेतृत्व में पार्टी 2014 में केंद्र की सत्ता में पहुंचेगी। 

और भी... http://yuvaadarpan.blogspot.in/2013/03/blog-post.html
http://raashtradarpan.blogspot.in/2013/03/blog-post.html

अध्यक्षीय भाषण 2 -3, मार्च 2013 - राष्ट्रीय परिषद की बैठक, तालकटोरा स्टेडियम, नई दिल्ली, में राज नाथ सिंह ने राष्ट्रीय अध्यक्ष का दायित्व पुन: ग्रहण करने के पश्चात् प्रथम बैठक में देश के विभिन्न कोनों से आए कार्यकर्ताओं के साथ, इस देश के लोगों की बड़ी अपेक्षाओं के दायित्व की भावना और अधिक चुनौतियों को बांटा। पूरा पदें- 
http://yuvaadarpan.blogspot.in/2013/03/2-3-2013.html
http://raashtradarpan.blogspot.in/2013/03/2-3-2013.html
http://samaajdarpan.blogspot.in/2013/03/2-3-2013.html
http://kaaryakshetradarpan.blogspot.in/2013/03/2-3-2013.html
http://sarvasamaachaardarpan.blogspot.in/2013/03/2-3-2013.html
http://newsreel-realnews.blogspot.in/2013/03/2-3-2013.html

http://bharatchaupal.blogspot.in/2013/03/2-3-2013.html
http://deshkimitti.blogspot.in/2013/03/2-3-2013.html
 http://yugdarpan.blogspot.in/2013/03/2-3-2013.html

वीडियो - 1) http://www.bjp.org/index.php?option=com_content&view=article&id=8592:speech-sh-rajnath-singh-in-bjp-national-council-meeting-at-talkatora-stadium&catid=68:press-releases&Itemid=494
2) http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=NQF3R5fmZVg
3)LKA http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=OOtPySZ7k-A
आर्थिक संकल्प मुद्रास्फीति की दर और भ्रष्टाचार यूपीए सरकार की पहचान बन गए हैं। पूरा पदें, 
वीडियो 
1) http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=-xhUX3Moubc
2) http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=GCHwfRKsFIw#!
3) http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=3DR3WO0EfPg
4) 
राजनैतिक प्रस्ताव यूपीए प्रधानमंत्री रूप में डा. मनमोहन सिंह के और श्रीमती सोनिया गांधी के नेतृत्व में अनियंत्रित भ्रष्टाचार को परिभाषित यूपीए सरकार। पूरा पदें, वीडियो 
1) http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=EkoSiWy2YNY
2) http://www.bjp.org/index.php?option=com_content&view=article&id=8598:points-made-shri-m-venkaiah-naidu-while-intervening-in-debate-on-political-resolution&catid=68:press-releases&Itemid=494
देश की मिटटी की सुगंध, भारतचौपाल | -तिलक संपादक

Sunday, November 4, 2012

भारतीय शिक्षा प्रणाली का विनाश

भारत की वर्तमान दुर्दशा के कारण व निवारण / भा (1)
भारतीय शिक्षा प्रणाली का विनाश 
(विवेकानंद स्टडी सर्कल, आईआईटी मद्रास. के तत्वावधान में जनवरी 1998 में दिए गए एक भाषण से अनुकूलित)  कृ इसे पूरा पढ़ें, समझें व जुड़ें
परिचय भूमिका 
ईस्ट इंडिया कंपनी और ततपश्चात, ब्रिटिश शासन में, लगता है शासकों के मन में दो इरादे काम कर रहे थे इस देश के मूल निवासी के धन लूटना और सभ्यता को डसना हम देखें, इन को प्राप्त करने के लिए, ब्रिटिश ने इतनी चतुराई से चाल चली है, व पूरे राष्ट्र पर सबसे बड़ा एक सम्मोहन बुना, कि आजादी के पचास वर्ष बाद भी हम, अभी भी व्यामोह की स्थिति से निकलने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं
संभवत: हम में से बहुत से भारतीयों को पता ही नहीं है, कि ब्रिटिश के यहाँ आने तक भारत विश्व का सबसे धनी देश था जबकि पहले विश्व निर्यात के रूप में भारत के 19% अंश के विरूद्ध ब्रिटेन का अंश केवल 9% था, आज हमारा अंश केवल 0.5% है उन्नीसवीं सदी तक कोई यात्री भारत के तट पर आया, उस समय भारत गरीब नहीं पाया गया है, लेकिन विदेशियों में अधिकांश शानदार धन की खोज में भारत आए "मदर इंडिया के बचाव में, एक विदेशी Phillimore का वक्तव्य", "18 वीं सदी के मध्य में, Phillimore ने किताब में लिखा है कि कोई यात्री विदेशी व्यापारियों और साहसी लगभग शानदार धन, चन्दन लकड़ी, जो वे वहाँ प्राप्त कर सकता है, के लिए उसके तट पर आया'मंदिर के पेड़ को हिलाना' एक मुहावरा था, कुछ हद तक हमारे आधुनिक अभिव्यक्ति 'तेल के लिए खोज' के समान हो गया है
भारत के गांव में 35 से 50% भूमि भाग, राजस्व से मुक्त थे और कहा कि राजस्व से स्कूलों, मंदिर त्योहारों का आयोजन, दवाओं के उत्पादन, तीर्थयात्रियों का खिलाना, सिंचाई में सुधार आदि चलता रहा है उन अंग्रेजों के लालच ने राजस्व मुक्त भूमि 5के नीचे किया गया था नीचे करने के कारण जब वहाँ एक विरोध रहता था, तब वे भारतीयों को आश्वासन दिया था कि सिंचाई की देखभाल के लिएसरकार ने सिंचाई विभाग बनाने,  एक शिक्षा बोर्ड को शिक्षा का ख्याल रखना होगा आदि। अत: लोगों की पहल व स्वावलम्बन को नष्ट कर दिया गया था लगता था, शासक उनको तंग करने के लिए मिला है उन्होंने पाया कि हालांकि अंग्रेजों ने इस देश पर विजय प्राप्त की थी, यह समाज अभी भी दृढ़ता से अपनी संस्कृति में निहित था वे जान गए कि जब तक यह समाज सतर्क है और यहां तक ​​कि अपनी परंपराओं का गर्व था, सदा उनके 'सफेद आदमी' बोझ 'के रूप में भारी और बोझिल' बना रहेगा उस समय भारत की शिक्षा प्रणाली एक व्यवस्था से बहुत अच्छी तरह से फैली थी, और अपने उद्देश्यों के लिए अप्रभावी बनाया जाना आवश्यक था अब, हम में से अधिकांश को समझाया/भरमाया गया है कि शिक्षा ब्राह्मणों के हाथों में और संस्कृत माध्यम में है, अत: अन्य जातियों को कोई शिक्षा नहीं देता था लेकिन कैसे ब्रिटिश ने भारतीय शिक्षा प्रणाली को नष्ट कर दिया और एक सबसे साक्षर देश का नाम अनपढ़ देशों आया के बारे में तथ्य यहाँ आगे हैं। :- 
अपने भाषणों में महात्मा गांधी ने 1931 में गोलमेज सम्मेलन में कहा, "शिक्षा के सुंदर पेड़ को आप ब्रिटिश के द्वारा जड़ से काटा गया था और इसलिए भारत आज 100 वर्ष पहले की तुलना में कहीं अधिक अनपढ़ है" इसके तत्काल बाद, फिलिप हार्टोग, जो एक सांसद था, उठ खड़ा हुआ और कहा, "Mr. Gandhi, यह हम है, जो भारत की जनता को शिक्षित किया है। इसलिए आप अपने बयान वापस ले और क्षमा मांगे या यह साबित करें "गांधी जी ने कहा कि वह यह साबित कर सकता हूँ। लेकिन समय की कमी के कारण बहस को जारी नहीं किया गया था। बाद में उनके अनुयायियों में से एक श्री धर्मपाल ने, ब्रिटिश संग्रहालय में जाकर रिपोर्ट और अभिलेखागार की जांच की वह एक पुस्तक प्रकाशित करता है,"द ब्यूटीफुल ट्री" जहां इस मामले में बड़े विस्तार में चर्चा की गई है। ब्रिटिश ने 1820 तक, हमारी शिक्षा प्रणाली के समर्थक वित्तीय संसाधनों को पहले से ही नष्ट कर दिया था एक विनाश कार्य वे लगभग बीस वर्षों से चला रहे थे लेकिन फिर भी भारतीय मांग शिक्षा की अपनी प्रणाली के साथ जारी रखने में बनी रही।  तो, ब्रिटिश सरकार ने इस प्रणाली की जटिलताओं को खोजने का फैसला किया। इसलिए 1822 में एक सर्वेक्षण का आदेश दिया गया था और ब्रिटिश जिला कलेक्टरों द्वारा आयोजित किया गया। सर्वेक्षण में पाया गया कि बंगाल प्रेसीडेंसी के मद्रास में 1 लाख गांव में स्कूल, बंबई में एक स्कूल के बिना एक भी गांव नहीं था, अगर गांव की आबादी 100 के पास रहे तो गांव में एक स्कूल था। इन स्कूलों में छात्रों तथा शिक्षक के रूप में सभी जातियों के थे। किसी भी जिले के शिक्षकों में ब्राह्मणों की संख्या 7% से 48% व शेष अन्य जातियों से थे। इसके अलावा सभी बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त होती थी
स्कूलों से बाहर आते समय तक छात्रों में वह प्रतिस्पर्धी क्षमता प्राप्त कर ली जाती थी और अपनी संस्कृति की उचित जानकारी होना और समझने में सक्षम रहता है। मद्रास में एक ईसाई मिशनरी के एक Mr.Bell, भारतीय शिक्षा प्रणाली वापस इंग्लैंड के लिए ले गए। तब तक, वहाँ केवल रईसों के बच्चों को शिक्षा दिया जाती थी और वहाँ इंग्लैंड में आम जनता के लिए शिक्षा शुरू की। ब्रिटिश प्रशासकों ने भारतीय शिक्षकों की क्षमता और समर्पण की प्रशंसा की हम समझ सकते है कि ब्रिटिश जनता को शिक्षित करने के लिए भारत से जनसामान्य शिक्षा प्रणाली को अपनाया गया वर्तमान प्राथमिक शिक्षा के समकक्ष 4 से 5 वर्ष तक चली हम सभी जानते हैं कि राष्ट्र को आगे ले जाने के लिए सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा ही महत्वपूर्ण है, न कि केवल कुछ को उच्च शिक्षा मिलती रहे। 
शेष है:- गिरावट का कारण: निम्नतर निस्पंदन विधि. तथा हताशा की जनक मैकाले की प्रणाली ।  
-राजीव दीक्षत-  http://www.youtube.com/watch?v=rcUaUfesoRE
देश की श्रेष्ठ प्रतिभा, प्रबंधन पर राजनिति के ग्रहण की परिणति दर्शाने का प्रयास | -तिलक संपादकदेश की मिटटी की सुगंध, भारतचौपाल | -तिलक संपादक

Monday, May 28, 2012

वैचारिक क्रांति द्वारा व्यापक परिवर्तन का आह्वान

वैचारिक क्रांति द्वारा व्यापक परिवर्तन का आह्वान
वन्दे मातरम,
व्यावसायिक पत्रकारिता सौम्य सार्थक नहीं रही;
सूचनाएं मूल्यजनक बनी मूल्यपरक नहीं रहीं;
समाज, व्यवस्था, जीवन शैली स्वस्थ नहीं रहे;
कपटपूर्ण प्रदर्शन ही है, मन की पवित्रता नहीं रही;
सुधार समर्पित पत्रकारिता हमारा पवित्र मिशन है !..

मित्रों, युग दर्पण मीडिया समूह द्वारा विविध विषयों के 25 ब्लाग, आर्कुट, फेसबुक, व उन पर समुदाय व समूहों तथा ट्विटर के अतिरिक्त 4 यूसर चैनलों का अंतर ताने पर महाजाल ! आपको आमंत्रित करता है:- वैचारिक क्रांति द्वारा आओ हम सब मिलकर मा. जय प्रकाश नारायण की कल्पना का व्यापक परिवर्तन करते भारत को सशक्त,समर्थ व स्वावलंबी तथा संपन्न बनायें !
क्या आप भी राष्ट्र सशक्तिकरण हेतु इस व्यापक, अनुभवी, समर्पित समूह से जुड़ कर मीडिया का सार्थक विकल्प बनाने में हमारा साथ देंगे ? जय भारत.
युग दर्पण राष्ट्रीय साप्ताहिक हिंदी के राष्ट्र व्यापी प्रतिनिधियों के ई-मेल सूत्र
Email Id for YugDarpan reporters (Statewise)
हरयाणा
-Haryana--............rep.har@yugdarpan.com
पंजाब 
-Punjab--..................pun.rep@yugdarpan.com
जेके 
-J & k--...................... jk.rep@yugdarpan.com
हि प्र 
-H.Pr.--.......................hp.rep@yugdarpan.com
उतराखंड 
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उ प्र
-UP--............................up.rep@yugdarpan.com
बिहार-Bihar --...................bih.rep@yugdarpan.com
म प्र-M.P ---.......................mp.rep@yugdarpan.com
छ गढ-
chh.grh--...............chhg.rep@yugdarpan.com
राज -
Rajasthan--...............raj.rep@yugdarpan.com
गुज -
Gujrat--.....................guj.rep@yugdarpan.com
मराष्ट्र -
MahR--..................mah.rep@yugdarpan.com
दक्षिण-
South--...................Sth.rep@yugdarpan.com

पूर्व-East--...........................est.rep@yugdarpan.com
-तिलक, संपादक युग दर्पण मिडिया समूह, ..
9911111611, 9654675533. tilak@yugdarpan.com, yugdarpan@gmail.com, yugdarpanh@rediff.com, yugdarpanh@yahoo.com,  websites:- www. yugdarpan.co.cc
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पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है-युगदर्पण

देश की मिटटी की सुगंध, भारतचौपाल!

Saturday, May 29, 2010

चौथा खम्बा और लोकतंत्र का चौथा

हमारे एक पत्रकार बंधू हैं पंकज झा आज उनका  लेख देखा ! जिस विषय को लेकर युगदर्पण  एक विकल्प के रूप में खड़ा करने का प्रयास 10 वर्ष पूर्व आरंभ हुआ !कई अवसरों पर लिखा भी गया ! उसे अंतरताने पर उठाने की सोच महाजाल बनाने का प्रयास कर रहा था ! मेरे 25 ब्लाग की शृंखला में सत्य दर्पण सामूहिक महाचर्चा के लिए ही रखा था, उसके लिए आवश्यक उपकरण Gadgets  क्या लगाये जाएँ, चल रहा था कि मेरा  मूल विषय पंकज जी ने छेड़ दिया आभारी हूँ ! इस विषय पर निश्चित सामूहिक महाचर्चा होनी चाहिए! कुछ अंश साभार प्रस्तुत हैं -
एक संस्कृत श्लोक है अति दानी बलि राजा, अति गर्वेण रावण, अति सुंदरी सीता, अति सर्वत्र वर्जयेत, अंग्रेजी में भी कहा गया है एकसिस एवरीथिंग इज बैड. तो इस उद्धरण के बहाने मीडिया द्वारा अतिवादी तत्वों को दिए जा रहे प्रश्रय पर भी गौर फरमाना समीचीन होगा.
खुलेआम नक्सली प्रवक्ता बन लोकतंत्र के समक्ष उत्पन्न इस सबसे बड़ी चुनौती का औचित्य निरूपण के लिए अपना मंच प्रदान करता है. इस संभंध में एक विवादास्पद लेखिका के लिखे लंबे-लंबे आलेख को प्रकाशित-प्रसारित प्रकाशित करना निश्चय ही उचित नहीं है.
 नक्सलियों के महिमामंडल को, आखिर क्या कहा जाय इसे?
आप सोंचे, प्रचार की यह कैसी भूख? उच्छृंखलता की कैसी हद? लोकतंत्र के साथ यह कैसी बदतमीजी? बाजारूपन की यह कैसी मजबूरी जो अपने ही बाप-दादाओं के खून से लाल हुए हाथ को मंच प्रदान कर रहा है. दुखद यह कि ऐसा सब कुछ “अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता” के संवैधानिक अधिकार की आड़ में हो रहा है. अफ़सोस यह है कि जिन विचारों के द्वारा मानव को सभ्यतम बनाने का प्रयास किया गया था. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकार, धर्मनिर्पेक्षता, समानता, सांप्रदायिक सद्भाव आदि शब्दों का ही दुरूपयोग कर आज का मीडिया विशेष ने इस तरह के उग्रवाद को प्रोत्साहित कर समाज की नाक में दम कर रखा है. sz
देश के सार्वाधिक उपेक्षित बस्तर में चल रहे इस कुकृत्य पर आजतक किसी भी बाहरी मीडिया ने तवज्जो देना उचित नहीं समझा. अभी हाल ही में 76 जवानों की शहादत के बावजूद सानिया-शोएब प्रकरण ही महत्वपूर्ण दिखा इन दुकानदारों को. कुछ मीडिया ने ज्यादा तवज्जो दी भी तो नक्सलियों के प्रचारक समूहों, वामपंथियों द्वारा पहनाये गये लाल चश्मों से देखकर ही.खास कर सबसे ज्यादा इस सन्दर्भ में अरुंधती राय द्वारा इस हमलों की पृष्ठभूमि तैयार करने वाले आलेख की ही चर्चा हुई. तो सापेक्ष भाव से एक बार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर विमर्श और उसका विश्लेषण आवश्यक है.
अपनी अभिव्यक्तियों को कुछ मर्यादाओं के अधीन रखें अथवा चुप ही रहना बेहतर. किसी ने कहा है कि “कह देने से दुख आधा हो जाता है और सह लेने से पूरा खत्म हो जाता है”. अगर पत्रकारीय प्रशिक्षण की भाषा का इस्तेमाल करूँ तो आपकी अभिव्यक्ति भी क्या,क्यूं, कैसे, किस तरह, किसको, किस लिए इस 6 ककार के अधीन ही होनी चाहिए. इस मर्यादा से रहित बयान, भाषण या लेखन ही अतिवादिता की श्रेणी में आता है.
 मीडिया का  वीभत्स राग अनुच्छेद 19 (1) ‘‘क’’ किसी प्रेस के लिए नहीं है. यह आम नागरिक को मिली स्वतंत्रता है और इसका उपयोग मीडिया को एक आम सामान्य नागरिक बनकर ही करना चाहिए और उसके हरेक कृत्य को आम नागरिक का तंत्र यानि लोकतंत्र के प्रति ही जिम्मेदार होना चाहिए. लोकतंत्र, लोकतांत्रिक परंपराओं के प्रति सम्मान, चुने हुए प्रतिनिधि के साथ तमीज से पेश आना भी इसकी शर्त होनी चाहिए. जैसा छत्तीसगढ़ का ही एक अखबार बार-बार एक चुने हुए मुख्यमंत्री को तो ‘‘जल्लाद’’ और ‘‘ऐसा राक्षस जो मरता भी नहीं है’’ संबोधन देता था और ठीक उसी समय नक्सल प्रवक्ता तक सलाम पहुंचाकर उसे जीते जी आदरांजलि प्रदान करता था. इस तरह की बेजा हरकतों से बचकर ही आप एक आम नागरिक की तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सेदार हो सकते हैं. साथ ही राज्य की यह जिम्मेदारी भी बनती है कि यदि स्व अनुशासन नहीं लागू कर पाये ऐसा कोई मीडिया समूह तो उसे सभ्य बनाने के लिए संवैधानिक उपचार करें. यदि परिस्थिति विशेष में बनाये गये कानून को छोड़ भी दिया जाए तो भी संविधान ही राज्य को ऐसा अधिकार प्रदान करती है कि वह उच्छृंखल आदतों के गुलामों को दंड द्वारा भी वास्तविक अर्थों में स्वतंत्र करे. उन्हें यह ध्यान दिलाये कि विभिन्न शर्तों के अधीन दी गई यह महान स्वतंत्रता आपके बड़बोलापन के लिए नहीं है, आपको उसी अनुच्छेद (19) ‘‘2’’ से मुंह मोडऩे नहीं दिया जाएगा कि आप “राज्य की सुरक्षा, लोक व्यवस्था, शिष्टïचार और सदाचार के खिलाफ” कुछ लिखें या बोलें. आप किसी का मानहानि करें , भारत की अखंडता या संप्रभुता को नुकसान पहुंचायें. ‘‘बिहार बनाम शैलबाला देवी’’ मामले में न्यायालय का स्पष्ट मत था कि ‘‘ऐसे विचारों की अभिव्यक्ति या ऐसे भाषण देना जो लोगों को हत्या जैसे अपराध करने के लिए उकसाने या प्रोत्साहन देने वाले हों, अनुच्छेद 19 (2) के अधीन प्रतिबंध लगाये जाने के युक्तियुक्त आधार होंगे।’’ न केवल प्रतिबंध लगाने के वरन ‘‘संतोष सिंह बनाम दिल्ली प्रशासन’’ मामले में न्यायालय ने यह व्यवस्था दी थी कि ‘‘ऐसे प्रत्येक भाषण को जिसमें राज्य को नष्ट-भ्रष्ट कर देने की प्रवृत्ति हो, दंडनीय बनाया जा सकता है.’’ आशय यह कि संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का ढोल पीटते समय आप उसपर लगायी गयी मर्यादा को अनदेखा करने का अमर्यादित आचरण नहीं कर सकते. इसके अलावा आपकी अभिव्यक्ति, दंड प्रक्रिया की धारा ‘499’ से भी बंधा हुआ है और प्रेस भी इससे बाहर नहीं है. प्रिंटर्स मैसूर बनाम असिस्टैण्ट कमिश्नर मामले में स्पष्ट कहा गया है कि प्रेस भी इस मानहानि कानून से बंधा हुआ है.
इसके अलावा संविधान के 16 वें संसोधन द्वारा यह स्थापित किया गया है कि आप भारत की एकता और अखंडता को चुनौती नहीं दे सकते. ‘‘यानि यदि भारत और चीन का युद्घ चल रहा हो तो आपको “चीन के चेयरमेन हमारे चेयरमेन हैं’’ कहने से बलपूर्वक रोका जाएगा. हर बार आपको आतंकियों को मंच प्रदान करते हुए, उन्हें सम्मानित करते हुए, जनप्रतिनिधियों को अपमानित करते हुए, उनके विरूद्घ घृणा फैलाते हुए, नक्सलवाद का समर्थन करते हुए, अपने आलेखों द्वारा ‘‘कानून हाथ में लेने’’ का आव्हान करते हुए उपरोक्त का ख्याल रखना ही होगा। स्वैच्छिक या दंड के डर से आपको अपनी जुबान पर लगाम रखना ही होगा. मीठा-मीठा गप्प-गप्प करवा-करवा थूँ-थूँ नहीं चलेगा. संविधान के अनुच्छेद 19 (1) का रसास्वादन करते हुए आपको 19 (2) की ‘‘दवा’’ लेनी ही होगी.
आपको महात्मा गांधी के शब्द याद रखने ही होंगे कि ‘‘आजादी का मतलब उच्छृंखलता नहीं है. आजादी का अर्थ है स्वैच्छिक संयम, अनुशासन और कानून के शासन को स्वेच्छा से स्वीकार करना.’’
भारतीय संस्कृति की सीता का हरण करने देखो, साधू वेश में फिर आया रावण! संस्कृति में ही हमारे प्राण है! भारतीय संस्कृति की रक्षा हमारा दायित्व -तिलक देश की मिटटी की सुगंध, भारतचौपाल!