देश की मिटटी की सुगंध, भारत चौपाल।
महाचर्चा के सूत्र। विश्व कल्याण तथा प्रकृति व उसकी सम्पूर्ण रचना से प्रेम को सिद्धांत रूप में मानने वाला विश्व में यदि कोई है तो वह भारत (इंडिया नही) है। भारतीय मूल्यों व हिंदुत्व को त्याग कर बने इंडिया में वह भारत आज कहाँ है?
(1) जड़ें मिटटी छोड़ दें, तो वृक्ष भी गिर जाते हैं.
मिटटी से जुडी घास हो , तूफान भी कल निकल जाते हैं।
विश्व शान्ति व मानवता के नारे लगाने मात्र से न विश्व में शान्ति की स्थापना होगी न मानवता की रक्षा। मानवाधिकार वादियों को मानव और दानव में अन्तर ही पता नही हो। आतंकियों से पीड़ित जनसामान्य की कराह उन्हें सुनाई न दे और उन दानवों या उनके समर्थकों में से किसी के भी मारे जाने पर छाती पीटने वाले ये लोग मानवता के शत्रुओं का पोषण व संरक्षण करते हैं।
जिन के लिए विश्व कल्याण एक सिद्धांत है आज उन्हे साम्प्रदायिक कहा जाता है. तथा जिन के लिए यह केवल एक नारा है, पाखण्ड है - धर्मं निरपेक्ष कहलाते हैं. वोट बैंक के लिए देश के शत्रुओं के संरक्षक बने भारत माता के ये कपूत निर्दोष सपूतों की बलि चढाते हैं। राष्ट्र भक्त इन्हें फूटी आँख नही सुहाते हैं।
(२) पतंग आकाश में जो तन के उड़ा करती है
धरती से कट के वो पैरों में गिरा करती है।
६० वर्षों से पूरे देश से करों के रूप में संगृहीत राजस्व से कश्मीर में पाक परस्तों का पोषण करते हुए , ऐसे तत्वों का प्रभुत्व बढाया जा रहा है । साम दाम दंड भेद का ढुलमुल उपयोग कर आधी शताब्दी में जिन से मुट्ठी भर आतंकी इस देश से खदेडे नही जा सके, उनका यह दावा कि हमने बिना खडग ढाल अंग्रेजों से भारत आजाद कराया, अविश्वसनीय सा लगता है। निश्चित ही अंग्रेज इन से डर कर नही , क्रांतिकारियों से डर कर भागे थे।.....
महाचर्चा के सूत्र। विश्व कल्याण तथा प्रकृति व उसकी सम्पूर्ण रचना से प्रेम को सिद्धांत रूप में मानने वाला विश्व में यदि कोई है तो वह भारत (इंडिया नही) है। भारतीय मूल्यों व हिंदुत्व को त्याग कर बने इंडिया में वह भारत आज कहाँ है?
(1) जड़ें मिटटी छोड़ दें, तो वृक्ष भी गिर जाते हैं.
मिटटी से जुडी घास हो , तूफान भी कल निकल जाते हैं।
विश्व शान्ति व मानवता के नारे लगाने मात्र से न विश्व में शान्ति की स्थापना होगी न मानवता की रक्षा। मानवाधिकार वादियों को मानव और दानव में अन्तर ही पता नही हो। आतंकियों से पीड़ित जनसामान्य की कराह उन्हें सुनाई न दे और उन दानवों या उनके समर्थकों में से किसी के भी मारे जाने पर छाती पीटने वाले ये लोग मानवता के शत्रुओं का पोषण व संरक्षण करते हैं।
जिन के लिए विश्व कल्याण एक सिद्धांत है आज उन्हे साम्प्रदायिक कहा जाता है. तथा जिन के लिए यह केवल एक नारा है, पाखण्ड है - धर्मं निरपेक्ष कहलाते हैं. वोट बैंक के लिए देश के शत्रुओं के संरक्षक बने भारत माता के ये कपूत निर्दोष सपूतों की बलि चढाते हैं। राष्ट्र भक्त इन्हें फूटी आँख नही सुहाते हैं।
(२) पतंग आकाश में जो तन के उड़ा करती है
धरती से कट के वो पैरों में गिरा करती है।
६० वर्षों से पूरे देश से करों के रूप में संगृहीत राजस्व से कश्मीर में पाक परस्तों का पोषण करते हुए , ऐसे तत्वों का प्रभुत्व बढाया जा रहा है । साम दाम दंड भेद का ढुलमुल उपयोग कर आधी शताब्दी में जिन से मुट्ठी भर आतंकी इस देश से खदेडे नही जा सके, उनका यह दावा कि हमने बिना खडग ढाल अंग्रेजों से भारत आजाद कराया, अविश्वसनीय सा लगता है। निश्चित ही अंग्रेज इन से डर कर नही , क्रांतिकारियों से डर कर भागे थे।.....
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