(23 /3 /2010) उनके बलिदान की 75वर्ष की स्मृति में कुछ लोग यह भ्रम फ़ैलाने के प्रयास में हैं कि भगत सिंह मार्क्स प्रेमी थे उनके शहीदी दिवस पर उस भ्रम का निवारण करने का प्रयास तिलक संपादक युगदर्पण:- क्या आप जानते व मानते हैं;
1) इस देश के लिए अपने प्राणों की बलि देने वाले शहीद शिरोमणि भगत सिंह को ऐसे वामपंथ से जोड़ना जिनकी निष्ठा भारत और भारतीय संस्कृती में नहीं, उनके बलिदान का अपमान है. वामपंथ के पाखंड से अनजान क्रांति शब्द ने उन्हें यदि मार्क्स को पढ़ने के लिए उकसाया हो तो उसे पढ़ने से मार्क्सवादी नहीं हो जाते. हिंदुत्व को गाली देने वाले वामपंथियों ने हिन्दू ग्रन्थ पढ़े होंगे, तो क्या वो स्वयं को हिन्दू मानते हैं, नहीं न? उन दिनों जापान और रूसभी अंग्रेजों से लड़ रहे थे नेताजी ने भारत की लड़ाईका केंद्र जापानको बनाया तो क्या वे जापानी हो गए? ICS के पद पर चयन, होने पर उसे भारत की स्वतंत्रता के लिए ठुकराया था या जापान के लिए ?इसी प्रकार शत्रु के शत्रु रूस को मित्र मान भी लिया जाये तो इसका अर्थ जो वामपंथी समझाने का प्रयास कर रहे हैं वह कदापि नहीं हो सकता ! मेरा रंगदे बसंती चोला /लाल चोला नहीं उनके भारतीय संस्कृती निष्ठ होने का प्रमाण है,वामपंथी होने का नहीं ! वे मार्क्स प्रेमी नहीं सच्चे राष्ट्र प्रेमी थे,अन्त तक भारतीय संस्कृति के पक्के अनुयायी थे! 2).25--30 वर्ष पूर्व फिल्म,तकनीक की कमियों के बाद भी उच्च स्तर की थी;
आज उल्टा हो गया है! यही स्थिति मिडिया की भी है! मिडिया एथिक्स/मूल्य प्रमाणिकता, प्रमाण पत्र मिलने के बाद भूल जाते है! समाज अपराध, अनैतिकता का अनुसधान केंद्र/कार्य क्षेत्र बन चुका है ! साथ ही देश के सांस्कृतिक व सूचना जनसंचार माध्यमों पर शिकंजा कस हिंदुत्व को नीचा दिखाने का कोई भी अवसर ढूंढ़ कर इकट्ठे होने वाले कथित बुद्धिजीवी इस समाज में वैचारिक व सांस्कृतिक प्रदूषण फैलाकर अँधेरे का साम्राज्य स्थापित करना चाहते हैं! इसे भी रोकना आवश्यक है!
3) मार्क्स और मैकाले की नाजायज संतानें पुस्तकीय शिक्षा,उपाधि पा कर बने नव विद्वान्,आज़ादी और अधिकारों की दुहाई देकर अपती विक्षिप्त मानसिकता का परिचय देते हुए,आधुनिकता की चमक दिखा कर, इस देश की संस्कृति व सौम्य जीवन को प्रदूषित कर रहे हैं! हमारे अधिकारों का अतिक्रमण कर रहे हैं ! हमारे मंदिरों में ऐसी मानसिकता के लोगों ने शिल्प के नाम पर ऐसी विकृत मानसिकता का परिचय दिया और इसी मानसिकता के गाइड उसका प्रचार करते रहे ! एक व्यापक कुचक्र के अंतर्गत अब उसे विकृति नहीं संस्कृति का अंग बताया जा रहा है ! इसको समझने व समझाने की आवश्यकता हैं! अभिव्यक्ति, आधुनिकता के आडम्बर इसकी ढाल न बने, इसके प्रति चेतना जगाएं, राष्ट्र को (भेड़ की खाल में छुपे भेड़ियों) मानवतावाद की आढ़ लेते इन शत्रुओं से बचाएं ! इसलिए इनको समझने व पहचानने की आवश्यकता है ! इस राष्ट्रीय मिशन को लेकर चले व युग दर्पण का उदय हुआ जिस की दसवीं वर्ष गांठ १६/३/१० को वर्ष प्रतिपदा के दिन मनाई गई !
4) पोथी पड़ने से ज्ञानी न बने लेखन से न विद्वान्, अनुभव और संस्कार बिन हानी हो यह मान ! कहे तिलक कविराय बिना सधी तलवार को ऐसे नहीं चलाय, घाव भी ये कर जाएगी और ले लेगी प्राण !!
उसी के विकल्प का प्रयास है! आपके सहयोग से सफल होगा! पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है-युगदर्पणजीवन के हर रूप/ हर रंग/हर पक्ष के दर्द को समझनेके
प्रयास में--अंतरताने पर ब्लॉग शृंखला.. (20 दर्पण+5)
अन्तरिक्ष/चेतना/राष्ट्र/धर्मसंस्कृति/ज्ञानविज्ञान/
जीवनशैली/जीवनमेला/महिलाघरपरिवार/पर्यावरण/
पर्यटनधरोहर/प्रतिभाप्रबंधनपरिणति/समाज/शिक्षा/
सत्य/कार्यक्षेत्र/सर्वसमाचार/ठिठोली/विश्व/युवा एवं
युग दर्पण, भारतचौपल, देशकीमिट्टी, फ़िल्मफ़ैशनक्लबफ़ंडा,काव्यांज्लिका,
रचनाकारका.ब्लॉगस्पाट.काम की पूरी श्रंखला प्रस्तुत है.
All are on Blogspot.com
just click on Google Address Baar.
http://www/.___ .blogspot.com/
Kaavyaanjalikaa__Rachnaakaarkaa__
(blog for Poety and other creative Activities)
ThitholeeDarpan_हास्य ठिठोली जीवन में आवश्यक है
किन्तु जीवन ठिठोली नहीं है, न बना दी जाए!.इस पूरी
शृंखला में भारत की सभी प्रकार की पीड़ा की अभिव्यक्ति है
आप इन सभी या इनमें से किसी भी पीड़ा को व्यक्त करने
हेतू कोई भी ब्लॉग चुन सकते हैं, लिख सकते हैं.
और अब http://www.deshkimitti.feedcluster.com/ भी
हमसे जुड़ने के इच्छुक ईमेल या चैट कर सकते हैं
(युगदर्पण h याहू / गूगल पर उपलब्ध है)
--युगदर्पण समाचार पत्र समूह
तिलक राज रेलन सम्पादक- युग दर्पण
09911111611, 9911145678, 9540007993,-91
http://www.deshkimitti.feedcluster.com/
अन्तरिक्ष/चेतना/राष्ट्र/धर्मसंस्कृति/ज्ञानविज्ञान/
जीवनशैली/जीवनमेला/महिलाघरपरिवार/पर्यावरण/
पर्यटनधरोहर/प्रतिभाप्रबंधनपरिणति/समाज/शिक्षा/
सत्य/कार्यक्षेत्र/सर्वसमाचार/ठिठोली/विश्व/युवा एवं
युग दर्पण, भारतचौपल, देशकीमिट्टी, फ़िल्मफ़ैशनक्लबफ़ंडा,काव्यांज्लिका,
रचनाकारका.ब्लॉगस्पाट.काम की पूरी श्रंखला प्रस्तुत है.
All are on Blogspot.com
just click on Google Address Baar.
http://www/.___ .blogspot.com/
Kaavyaanjalikaa__Rachnaakaarkaa__
(blog for Poety and other creative Activities)
ThitholeeDarpan_हास्य ठिठोली जीवन में आवश्यक है
किन्तु जीवन ठिठोली नहीं है, न बना दी जाए!.इस पूरी
शृंखला में भारत की सभी प्रकार की पीड़ा की अभिव्यक्ति है
आप इन सभी या इनमें से किसी भी पीड़ा को व्यक्त करने
हेतू कोई भी ब्लॉग चुन सकते हैं, लिख सकते हैं.
और अब http://www.deshkimitti.feedcluster.com/ भी
हमसे जुड़ने के इच्छुक ईमेल या चैट कर सकते हैं
(युगदर्पण h याहू / गूगल पर उपलब्ध है)
--युगदर्पण समाचार पत्र समूह
तिलक राज रेलन सम्पादक- युग दर्पण
09911111611, 9911145678, 9540007993,-91
http://www.deshkimitti.feedcluster.com/
Tuesday, 16 March 2010
नव संवत 2067 की शुभकामनाएं.
अंग्रेजी का नव वर्ष भले हो मनाया,
उमंग उत्साह चाहे हो जितना दिखाया;
विक्रमी संवत बढ़ चढ़ के मनाएं,
चैत्र के नव रात्रे जब जब आयें;
घर घर सजाएँ उमंग के दीपक जलाएं,
खुशियों से ब्रहमांड तक को महकाएं.
यह केवल एक कैलेंडर नहीं प्रकृति से सम्बन्ध है,
इसी दिन हुआ सृष्टि का आरंभ है.
युगदर्पण परिवार की ओर से अखिल विश्व में फैले हिन्दू समाज सहित,चरअचर सभी के लिए गुडी पडवा, उगादी, नव संवत 2067 की शुभकामनाएं.
तिलक संपादक युगदर्पण. .(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/चैट करें, संपर्कसूत्र-09911111611,9911145678,9540007993. www.bharatchaupal.blogspot.com/ www.deshkimitti.blogspot.com
उमंग उत्साह चाहे हो जितना दिखाया;
विक्रमी संवत बढ़ चढ़ के मनाएं,
चैत्र के नव रात्रे जब जब आयें;
घर घर सजाएँ उमंग के दीपक जलाएं,
खुशियों से ब्रहमांड तक को महकाएं.
यह केवल एक कैलेंडर नहीं प्रकृति से सम्बन्ध है,
इसी दिन हुआ सृष्टि का आरंभ है.
युगदर्पण परिवार की ओर से अखिल विश्व में फैले हिन्दू समाज सहित,चरअचर सभी के लिए गुडी पडवा, उगादी, नव संवत 2067 की शुभकामनाएं.
तिलक संपादक युगदर्पण. .(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/चैट करें, संपर्कसूत्र-09911111611,9911145678,9540007993. www.bharatchaupal.blogspot.com/ www.deshkimitti.blogspot.com
Wednesday, 10 March 2010
विहिप के सेवा प्रकल्प, गौसेवा
हमारा मत्त है कि कई बार देश की सेवा में लगे संगठन अपनी अपनी सोच, क्षमता व पद्धति से करते है! मत भिन्नता के कारण उसे सांप्रदायिक कह कर तिरस्कृत कर उसके मार्ग में बाधा डालने से राष्ट्र को क्षति ही पहुंचेगी! ऐसे कार्य करने वालों की अपनी राष्ट्रनिष्ठा संदिग्ध हो जाति है! विशेषकर, जब धर्म निरपेक्षता का दंभ भरने वाले स्वयं सांप्रदायिक राजनीति करते हों! जब इस्लाम खतरे में कहा जाये तो सांप्रदायिक नहीं होता, तो हिंदुत्व की रक्षा करना बुरा क्यों बन जाता है? इस परिपेक्ष्य में ऐसा कोई कारण नहीं दीखता कि विहिप के श्रेष्ठ कार्यों को भी हम पूर्वाग्रह से मुक्त हो कर न देखें? --संपादक युगदर्पण
izSl foKfIr
gtkjksa lsok izdYiksa ds lkFk gqvk fofgi dk dk;Z foLrkj % pEir jk;
viuh LFkkiuk ds46 o’kZesfo”o fgUnwifj’kn uslektksRFkku dsfy, vufxur dk;Zfd;sgSA vkB gtkj lsvf/kd lsok izdYiksausns”k dsvHkkoxzLr {ks=ksaesØkafrdkjh ifjorZu fd;sgSA vVd lsdVd rd vkSj xqtjkr lsvklke rd QSysfofo/k izdkj dsdk;ksaZdsfy, fofgi dksl ekt dk Hkjiwj leFkZu vkSj lg;ksx fey jgk gSrFkk vkxkeh o’kkasZesage vkSj u;slsok izdYi [kksydj ns”k dspgqeq[kh fodkl easviuh Hkwfedk lqfuf”pr djsxsA
mijksDr ckrsfo”o fgUnwifj’kn dsvarjkZ’Vªh; la;qDr egkea=h Jh pEir jk; }kjk nf{k.kh fnYyh dsyktir uxj iz[k.M dsrRok/kku easvk;ksftr fd;sx;s/keZj{kk fuf/k viZ.k dk;ZØe dks lEcksf/kr djrsgq, dghaAmUgksausdgk fd xzkeh.k LokLF;] izkFkfed fpfdRlk] dEI;wVj f”k{kk] xzke fodkl] Ik;kZoj.k laj{k.k] ty lao/kZu] xÅlsok] vukFk fodykax o fujkfJr lsok] Nk=koklksdslkFk fofo/k vk;keksaeasxr o’kksZaesafd;k x;k fofgi dk izos”k lekt dh fn”kk vkSj n”kk nksuksadks cnyusesavxz.kh Hkwfedk fuHkk jgk gSA dk;ZØe dh i`f’B Hkwfe ij izdk”k Mkyrs gq, fofgi fnYyh izkar v/;{k Jh Lons”k iky usdgk fd vkt dsbl dk;ZØe ds ek/;e lsgeus ns”k easpy jgsfofo/k izdkj dsLokLF; j{k.k dsrjhdksalsvusd yksxksadk fu%”kqYd LokLF; ijh{k.k o fo'ks’kK MkDVjksdh lykg miYkC/k djk;h gSrFkk ns”kh uLy dh xk;kslsizkIr nw/k o ?kh ds lkFk iapxO; mRiknksadh fo”kky izn”kZuh tksvkt yxk;h x;h gSog u flQZekuo LokLF; dsfy, ykHknk;d gScfYd Hkwfe dh moZjk “kfDr o Ik;kZoj.k laj{k.k dsfy, ehy dk iRFkj lkfcr gksxhA mUgksusdgk fd fo”o eaxy xkSxzke ;k=k rksiwjh gksx;h fdUrqxkSnw/k]?kh o iapxO; dh miyC/krk iwjh fnYyh esgksbldsfy, geusdk;ZizkjEHk dj fn;k gSA“kh?kzgh vc fnYyhoklh Lo.kZ;qDRk nqX/k dk lsou ?kj cSBs dj ldsaxsA
fjaxjksM fLFkr ljLorh cky eafnj fo|ky; esvk;ksftr dk;ZØe es,D;wizs”kj] U;wjksFksjsih] iapdekZ];ksxkFksjsih rFkk vk;qosZn } kjk LokLF; tkap o fo'ks’kK MkDVjksdh lykg nh x;hA ogkaLFkkfir xkS&cNMsdh lqUnj ewfrZdsn”kZu dj lHkh ea= eqX/k FksA dk;ZØe easdqN cky dykdkjksausjaxksyh cuk dj Hkh yksxksadksvkdf’kZr fd;kA [kpk [kp Hkjsfo|ky; dslHkkxkj dseap ij izfl) dSalj 'kY; fpfdRld o fo/kk;d Mk-,l-lh-,y xqIrk eq[; vfrfFk]ioZleUo;lfefr fnYyh dsv/; {k Jh yD [khjke “kekZfo”ks’k vfrfFk] yk;Ul Dyc dsftyk xouZj Jh lquhy of”k’B] lsok fuo`r vkbZih,l Jh lh ,l ikpkZo bUnzizLFk fofgi dsegkea=h Jh lR;sUnzeksgu mifLFkr FksA
dk;ZØe easfofgi dsizkar mik/;{k Jh ve`r yky “kekZ]ljnkj mtkxj flag o Jherh rkjk HkkxZo] laxBu ea=h Jh d:.kk izdk”k] ea=h jked`’.k JhokLro] ehfM;k izeq[k fouksn clay] lRlax izeq[k Mk- jk/kkdkUr oRl] leUo; izeq[k HkwisUnz xqIrk] xkSj{kk izeq[k rkjkpUnz xqIrk] ekr`”kfDr la;ksftdk Jherh larks’k xkSM+ o lfork esgrk] nqxkZokfguh la;ksftdk dq- vatyh o ctjax ny izkar lg la;kstd “kSysUnz tk;loky] fofgi foHkkx ea=h uUn fd”kksj] foHkkx v/;{k txnh”k pUnz]ftyk v/;{k JhdkUr “kekZ]dslkFk vusd {ks=h; tu izfrfuf/k] lektlsoh o f”k{kk txr lstqMsgq, yksx mifLFkr FksA l/kU;okn~
Hkonh;
¼fouksncaly½ ehfM;kizeq[k 9810949109
Hkonh;
Sunday, 28 February 2010
होली है.....! उल्लास का पर्व है, हुडदंग नहीं, उल्लास और शालीनता से मनाएं; अखिल विश्व में विराजे हिन्दुओं को युगदर्पण परिवार की ओर से, सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनायें !!
तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, (yugdarpanh@gmail/yahoo.com
तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, (yugdarpanh@gmail/yahoo.com
Sunday, 14 February 2010
Valentine kaa maayaajaal: Prem/ Dikhaavaa/ Vyaapaar/Chhalaavaa.
भारतीय मूल्यों की प्रसांगिकता (युग दर्पण राष्ट्रीय समाचार पत्र के अंक १६-२२ फरवरी २००९ में सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित लेख, आज ब्लॉग के माध्यम पुन: प्रकाशित )
विविधता तो भारत की विशिष्टता सदा से रही है किन्तु आज विविधता में एकता केवल एक नारा भर रह गया है!विभिन्न समुदायों में एहं व परस्पर टकराव का आधार जाति, वर्ग, लिंग,धर्म ही नहीं, पीडी की बदलती सोच मर्यादाविहीन बना विखंडन के संकेंत दे रही है! इन दिनों वेलेंतैनेडे के पक्ष विपक्ष में तथा आजादी और संस्कृति पर मोर्चे खुले हैं. वातावरण गर्मा कर गरिमा को भंग कर रहा है .
-बदलती सोच- एक पक्ष पर संस्कृति के नाम पर कानून में हाथ लेना व गुंडागर्दी का आरोप तथा व्यक्ति की स्वतंत्रता के अतिक्रमण के आरोप है! दूसरे पर आरोप है अपसंस्कृति अश्लीलता व अनैतिकता फैलाने का! दूसरी ओर आज फिल्म टीवी अनेक पत्र पत्रिकाओं में मजोरंजन के नाम पर कला का विकृत स्वरूप देश की युवा पीडी का ध्यान भविष्य व ज्ञानोपार्जन से भटका कर जिस विद्रूपता की ओर लेजा रहा है! पूरा परिवार एक साथ देख नहीं सकता!
घर से पढ़ने निकले १५-२५ वर्ष के युवा इस उतेजनापूर्ण मनोरंज के प्रभाव से सार्वजनिक स्थानों (पार्को) में अर्धनग्न अवस्था व आपतिजनक मुद्रा में संलिप्त दिखाई देते हैं! जिससे वहां की शुद्ध वायु पाना तो दूर (जिसके लिए पार्क बने हैं) बच्चों के साथ पार्क में जाना संभव नहीं! फिर अविवाहित माँ बनना व अवैध गर्भाधान तक सामान्य बात होती जा रही है! हमारें पहिये संविधान और समाज की धुरियों पर टिके हैं तो इन्ही के सन्दर्भ के माध्यम स्तिथि का निष्पक्ष विवेचन करने का प्रयास करते हैं!
विगत ६ दशक से इस देशमें अंग्रजो के दासत्व से मुक्ति के पश्चात् इस समाज को खड़े होने के जो अवसर पहले नहीं मिल पा रहे थे मिलने लगे, इस पर प्रगतिशीलता और विकास के आधुनिक मार्ग पर चलने का नारा समाज को ग्राह्य लगना स्वाभाविक है! किन्तु दुर्भाग्य से आधुनिकता के नाम पर पश्चिम की अंधी दौड़ व प्रगतिशीलता के नाम पर "हर उस परम्परा का" विरोध व कीचड़ उछाला जाने लगा, जिससे इस देश को उन "मूल्यों आदर्शों संस्कारों मान्यताओं व परम्पराओं से पोषण उर्जा व संबल" प्राप्त होता रहा है! जिन्हें युगों युगों से हमने पालपोस कर संवर्धन किया व परखा है तथा संपूर्ण विश्व ने जिसके कारण हमें विश्व गुरु माना है! वसुधैव कुटुम्बकम के आधार पर जिसने विश्व को एक कल्याणकारी मार्ग दिया है! विश्व के सर्वश्रेष्ट आदर्शो मूल्यों व संस्कारों की परम्पराओं को पश्चिम की नवोदित संस्कृति के प्रदूषित हवा के झोकों से संक्रमित होने से बचाना किसी भी दृष्टि से अनुचित नहीं ठहराया जा सकता
सहिष्णुता नैसर्गिक गुण- क्या हमने कभी समझने का प्रयास किया कि आजादी के पश्चात् जब मुस्लिम बाहुल्य पाकिस्तान एक इस्लामिक देश बना, तो हिन्दू बाहुल्य भारत हिन्दवी गणराज्य की जगह धर्मनिरपेक्ष लोकतन्त गणराज्य क्यों बना? यहाँ का बहुसंख्यक समाज स्वाभाव से सदा ही धार्मिक स्वतंत्रता व सहिष्णुता के नैसर्गिक गुणों से युक्त रहा है! धर्म के प्रति जितनी गहरी आस्था विभिन्न पंथों के प्रति उतनी अधिक सहिष्णुता का व्यवहार उतना ही अधिक निर्मल स्वभाव हमें विरासत में मिला है! विश्व कल्याण व समानता का अधिकार हमारी परम्परा का अंग रही है! उस निर्मल स्वभाव के कारण सेकुलर राज्य का जो पहाडा पडाया गया उसे स्वीकार कर लिया!
६० वर्ष पूर्व उस पीडी के लोग जानते हैं, सामान्य भारतीय (मूल हिन्दू) स्वाभाव सदा ही निर्मल था! वे यह भी जानते हैं कि विश्व कल्याण व समानता के अधिकार दूसरो को देने में सकोच न करने वाले उस समाज को ६० वर्ष में किस प्रकार छला गया? उसका परिणाम भी स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है! हम कभी हिप्पिवाद, कभी आधुनिकता के नाम खुलेपन (अनैतिकता) के द्वार खोल देते हैं! अब स्थिति ये है कि आज ये देश मूल्यहीनता, अनैतिकता, अपसंस्कारों, अपराधों व विषमताओं सहित; अनेकों व्याधियों, समस्याओं व चुनोतियों के अनंत अंधकार में छटपटा रहा है? उस तड़प को कोई देशभक्त ही समझ सकता है! किन्तु देश की अस्मित के शत्रुओं के प्रति नम्रता का रुझान रखने वाले देश के कर्णधार इस पीढा का अनुभव करने में असमर्थ दिखते हैं!
निष्ठा में विकार- आजादी की लड़ाई में हिन्दू मुसलिम सभी वन्दे मातरम का नारा लगाते, उससे ऊर्जा पाते थे. उसमे वे भी थे जो देश बांटकर उधर चले गए, तो फिर इधर के मुसलमान वन्देमातरम विरोधी कैसे हो सकते थे ? आजादी के पश्चात अनेक वर्षो तक रेडियो टीवी पर एक समय राष्ट्रगीत, एक समय राष्ट्रगान होता था! इस सेकुलर देश के, स्वयं को "हिन्दू बाई एक्सिडेंट" कहने वाले प्रथम प्रधानमंत्री से दूसरे व तीसरे प्रधानमंत्री तक के काल में इस देश में वन्दे मातरम किसी को सांप्रदायिक नहीं लगा, फिर इन फतवों का कारण ?
इस देश की मिटटी के प्रति समपर्ण फिर कैसे कुछ लोगो को सांप्रदायिक लगने लगा? वन्देमातरम हटाने की कुत्सित चालों से किसने अपने घटियापन का प्रमाण दिया? उस समय अपराधिक चुपपी लगाने वालो को, क्यों हिन्दुत्व का समर्थन करने वालों से मानवाधिकार, लोकतंत्र व सेकुलरवाद संकट में दिखाई देने लगता है? हिन्दुत्व के प्रति तिरस्कार, कैसा सेकुलरवाद है? जब कोई जेहाद या अन्य किसी नाम से मानवता के प्रति गहनतम अपराध करता है, तब भी मानवाधिकार कुमभकरनी निद्रा से नहीं जागता? जब हिन्दू समाज में आस्था रखने वालों की आस्था पर प्रहार होता तब भी सता के मद में मदमस्त रहने वाले, कैसे, अनायास; हिन्दुत्व की रक्षा की आवाज सुनकर(भयभीत) तुरंत जाग जाते हैं? किन्तु उसके समर्थन में नहीं; भारतीय संस्कृति व हिन्दुत्व की आवाज उठाने वालों को खलनायक व अपराधी बताने वाले शब्द बाणों से चहुँ ओर से प्रहार शुरू कर देते हैं!
अभी कुछ दिन पूर्व मंगलूर में पब की एक घटना पर एक पक्षिय वक्तवयो, कटाक्षों, से उन्हें कहीं हिन्दुत्व का ठेकदार, कहीं संस्कृती का ठेकदार का रूप में, फांसीवादी असहिष्णु व गुंडा जैसे शब्दों से अलंकृत किया गया! इसलिए कि उन्हें पब में युवा युवतियों का मद्यपान व अश्लील हरकतों पर आपति थी ? संभव है, इस पर दूसरे पक्ष ने (स्पष्ट: योवन व शराब की मस्ती का प्रकोप में) उतेजनापूर्ण प्रतिकार भी किया होगा? परिणामत दोनों पक्षों में हाथापाई? ताली दोनों हाथो से बजी होगी? एक को दोषी मन व दूसरे का पक्ष लेना क्या न्यायसंगत है? जिस अपरिपक्व आयु के बच्चों को कानून नौकरी, सम्पति, मतदान व विवाह का अधिकार नहीं देता;क्योंकि अपरिपक्व निर्णय घातक हो सकते हैं; आकर्षण को ही प्रेम समझने कि नादानी उनके जीवन को अंधकारमय बना सकती है! उन्हें आयु के उस सर्वधिक संवेदनशील मोड़ पर क्या दिशा दे रहें हैं, हम लोग? जिस लोकतंत्र ने आधुनिकाओं को अपने ढंग से जीने का अधिकार दिया है, उसी लोकतंत्र ने इस देश की संस्कृति व परम्पराओं के दिवानो को उस कि रक्षा के लिये विरोध करने का अधीकार भी दिया है! माना उन्हें जबरदस्ती का अधिकार नहीं है तो तुम्हे समाज के बीच नैतिक, मान्यताओं, मूल्यों को खंडित करने का अधिकार किसने दिया? किसी की आस्था व भावनायों को ठेस पहुंचाने की आजादी, कौन सा सात्विक कार्य है?
गाँधी दर्शन- जिस गाँधी को इस देश की आजादी का पूरा श्रेय देकर व जिसके नाम से ६० वर्षों से उसके कथित वारिस इस देश का सता सुख भोग रहें है, उसकी बात तो मानेगे! उसने स्पष्ट कहा था 'आपको ऊपर से ठीक दिखने वाली इस दलील के भुलावे में नहीं आना चाहिय कि शराब बंदी जोर जबरदस्ती के आधार पर नहीं होनी चाहिये; और जो लोग शराब पीना चाहते हैं, उन्हें इसकी सुविधा मिलनी ही चाहिये! हम वैश्याल्यो को अपना व्यवसाय चलाने की अनुमति नहीं देते! इसी तरह हम चोरो को अपनी चोरी की प्रवृति पूरी करने की सुविधाए नहीं देते! मैं शराब को चोरी ओर व्यभिचार दोनों से ज्यादा निन्दनीय मानता हूँ!'
जब इस बुराई को रोकने का प्रयास किया गया तो हाथापाई होने पर जैसी प्रतिक्रिया दिखाई जा रही है, वैसी उस बुराई को रोकने में क्यों नहीं दिखाई गयी! इस बुराई को रोकने का प्रयास करने पर आज गाँधी को भी ये आधुनिकतावादी इसी आधार पर प्रतिगामी, प्रतिक्रियावादी व फासिस्ट घोषित कर देते?
इस मदिरापान से विश्व मैं मार्ग दुर्घटनाएँ होती हैं! मदिरापान का दुष्परिनाम तो महिलाओं को ही सर्वाधिक झेलना पड़ता है! इसी कारण महिलाएं इन दुकानों का प्रबल विरोध भी करती हैं! किन्तु जब प्रतिरोध भारतीय संस्कृति के समर्थको ने किया है तो उसमें गतिरोध पैदा करने की संकुचित व विकृत मानसिकता, हमे अपसंस्कृति व अनुचित के पक्ष में खड़ा कर, अनिष्ट की आशंका खड़ी करती है ??
समस्या व परिणाम- किन्तु हमारे प्रगतिशील, आधुनिकता के पाश्चात्यानुगामी गोरो की काली संताने अपने काले कर्मो को घर की चारदीवारी में नहीं पशुवत बीच सड़क करने के हठ को, क्यों अपना अधिकार समझते हैं? पूरे प्रकरण को हाथापाई के अपराध पर केन्द्रित कर, हिन्दू विरोधी प्रलाप करने वाले, क्यों सभ्य समाज में सामाजिक व नैतिक मूल्यों की धज्जियाँ उड़ाने व अपसंस्कृति फैलाने के मंसूबों का समर्थन करने में संकोच नहीं करते ? फिर उनके साथ में मंगलूर जैसी घटना होने पर सभी कथित मानवतावादी उनके समर्थन में हिन्दुत्व को गाली देकर क्या यही प्रमाण देना चाहते हैं: कि १) भारत में आजादी का पश्चात मैकाले के सपनो को पहले सेभी तीर्वता से पूरा किया जा सकता है?
२) जिस संस्कृति को सहस्त्र वर्ष के अन्धकार युग में भी शत्रुओ द्वारा नहीं मिटाया जा सका व आजादी के संघर्ष में प्रेरण हेतु देश के दीवाने गाते थे "यूनान मिश्र रोमा सब मिट गए जहाँ से, कुछ बात है कि अब तब बाकि निशान हमारा", आजाद भारत में उसके इस गौरव को खंडित करने व उसे ही दुर्लक्ष्य करने की आजादी, इस देश के शत्रुओं को उपलब्ध हो? क्या लोकतंत्र, समानता, सहिष्णुता के नाम पर ये छूट हमारी अस्मिता से खिलवार नहीं??
केवल सता में बने रहना या सीमा की अधूरी,अनिश्चित सुरक्षा ही राष्ट्रिय अस्मिता नहीं है! जिस देश की संस्कृति नष्ट हो जाती है, रोम व यूनान की भांति मिट जाता है! हमारी तो सीमायें भी देश के शत्रुओं के लिये खुली क्यों हैं? हमारे देश के कुछ भागो पर ३ पडोसी देश अपना अधिकार कैसे समझते हैं? वहां से कुछ लोग कैसे हमारी छाती पर प्रहार कर चले जाते हैं? हम चिल्लाते रह जाते हैं? देश की संस्कृति मूल्यों मान्यताओ सहित इतिहास को तोड मरोड कर हमारे गौरव को धवंस्त किया जाता है! सरकार की ओर से उसे बचाने का कोई प्रयास नहीं किया जाता! क्योंकि हम धर्म निरपक्ष है? फिर, कोई और बचाने का प्रयास करे तो उसे कानून हाथ में लेने का अपराध माना जाता है? इस देश के मूल्यों आदर्शो की रक्षा न करेंगे न करने देंगे? फिर भी हम कहते हैं कि सब धर्मावलम्बीयों को अपने धर्म का पालन करने, उसकी रक्षा करनें का अधिकार है, अपनी बात कहने का अधिकार है? कैसा कानून कैसा अधिकार व कैसी ये सरकार?
जरा सोचे- व्यवहार में देखे तो भारत व भारतीयता के उन तत्वों को दुर्लक्ष किया जाता है, जिनका संबध भारतीय संस्कृति, आदर्शो, मूल्यों व परम्पराओं से है! क्योंकि वे हिंदुत्व या सनातन परम्परा से जुड़े हैं? उसके बारे में भ्रम फैलाना, अपमानित व तिरस्कृत करना, हमारा सेकुलर सिद्ध अधिकार है?
इस अधिकार का पालन हर स्तर पर होना ही चाहिये? किन्तु उन मूल्यों की स्पर्धा में जो भी आए उसे किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने दिया जायेगा? हिन्दू हो तो, इस सब को सहन भी करो और असहिष्णु भी कहलाओ? सहस्त्र वर्ष के अंधकार में भी संस्कारो की रक्षा करने में सफल विश्व गुरु, दिन निकला तो एक शतक भी नहीं लगा पाया और मिट गया ! अगली पीडी की वसीयत यही लिखेंगे हम लोग?
इस विडंबना व विलक्षण तंत्र के कारण हम संस्कृतिविहीन व अपसंस्कृति के अभिशप्त चेहरे को दर्पण में निहारे तो कैसे पहचानेगे? क्या परिचय होगा हमारा?..
तिलक राज रेलन संपादक युग दर्पण (9911111611), (9540007993).
विविधता तो भारत की विशिष्टता सदा से रही है किन्तु आज विविधता में एकता केवल एक नारा भर रह गया है!विभिन्न समुदायों में एहं व परस्पर टकराव का आधार जाति, वर्ग, लिंग,धर्म ही नहीं, पीडी की बदलती सोच मर्यादाविहीन बना विखंडन के संकेंत दे रही है! इन दिनों वेलेंतैनेडे के पक्ष विपक्ष में तथा आजादी और संस्कृति पर मोर्चे खुले हैं. वातावरण गर्मा कर गरिमा को भंग कर रहा है .
-बदलती सोच- एक पक्ष पर संस्कृति के नाम पर कानून में हाथ लेना व गुंडागर्दी का आरोप तथा व्यक्ति की स्वतंत्रता के अतिक्रमण के आरोप है! दूसरे पर आरोप है अपसंस्कृति अश्लीलता व अनैतिकता फैलाने का! दूसरी ओर आज फिल्म टीवी अनेक पत्र पत्रिकाओं में मजोरंजन के नाम पर कला का विकृत स्वरूप देश की युवा पीडी का ध्यान भविष्य व ज्ञानोपार्जन से भटका कर जिस विद्रूपता की ओर लेजा रहा है! पूरा परिवार एक साथ देख नहीं सकता!
घर से पढ़ने निकले १५-२५ वर्ष के युवा इस उतेजनापूर्ण मनोरंज के प्रभाव से सार्वजनिक स्थानों (पार्को) में अर्धनग्न अवस्था व आपतिजनक मुद्रा में संलिप्त दिखाई देते हैं! जिससे वहां की शुद्ध वायु पाना तो दूर (जिसके लिए पार्क बने हैं) बच्चों के साथ पार्क में जाना संभव नहीं! फिर अविवाहित माँ बनना व अवैध गर्भाधान तक सामान्य बात होती जा रही है! हमारें पहिये संविधान और समाज की धुरियों पर टिके हैं तो इन्ही के सन्दर्भ के माध्यम स्तिथि का निष्पक्ष विवेचन करने का प्रयास करते हैं!
विगत ६ दशक से इस देशमें अंग्रजो के दासत्व से मुक्ति के पश्चात् इस समाज को खड़े होने के जो अवसर पहले नहीं मिल पा रहे थे मिलने लगे, इस पर प्रगतिशीलता और विकास के आधुनिक मार्ग पर चलने का नारा समाज को ग्राह्य लगना स्वाभाविक है! किन्तु दुर्भाग्य से आधुनिकता के नाम पर पश्चिम की अंधी दौड़ व प्रगतिशीलता के नाम पर "हर उस परम्परा का" विरोध व कीचड़ उछाला जाने लगा, जिससे इस देश को उन "मूल्यों आदर्शों संस्कारों मान्यताओं व परम्पराओं से पोषण उर्जा व संबल" प्राप्त होता रहा है! जिन्हें युगों युगों से हमने पालपोस कर संवर्धन किया व परखा है तथा संपूर्ण विश्व ने जिसके कारण हमें विश्व गुरु माना है! वसुधैव कुटुम्बकम के आधार पर जिसने विश्व को एक कल्याणकारी मार्ग दिया है! विश्व के सर्वश्रेष्ट आदर्शो मूल्यों व संस्कारों की परम्पराओं को पश्चिम की नवोदित संस्कृति के प्रदूषित हवा के झोकों से संक्रमित होने से बचाना किसी भी दृष्टि से अनुचित नहीं ठहराया जा सकता
सहिष्णुता नैसर्गिक गुण- क्या हमने कभी समझने का प्रयास किया कि आजादी के पश्चात् जब मुस्लिम बाहुल्य पाकिस्तान एक इस्लामिक देश बना, तो हिन्दू बाहुल्य भारत हिन्दवी गणराज्य की जगह धर्मनिरपेक्ष लोकतन्त गणराज्य क्यों बना? यहाँ का बहुसंख्यक समाज स्वाभाव से सदा ही धार्मिक स्वतंत्रता व सहिष्णुता के नैसर्गिक गुणों से युक्त रहा है! धर्म के प्रति जितनी गहरी आस्था विभिन्न पंथों के प्रति उतनी अधिक सहिष्णुता का व्यवहार उतना ही अधिक निर्मल स्वभाव हमें विरासत में मिला है! विश्व कल्याण व समानता का अधिकार हमारी परम्परा का अंग रही है! उस निर्मल स्वभाव के कारण सेकुलर राज्य का जो पहाडा पडाया गया उसे स्वीकार कर लिया!
६० वर्ष पूर्व उस पीडी के लोग जानते हैं, सामान्य भारतीय (मूल हिन्दू) स्वाभाव सदा ही निर्मल था! वे यह भी जानते हैं कि विश्व कल्याण व समानता के अधिकार दूसरो को देने में सकोच न करने वाले उस समाज को ६० वर्ष में किस प्रकार छला गया? उसका परिणाम भी स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है! हम कभी हिप्पिवाद, कभी आधुनिकता के नाम खुलेपन (अनैतिकता) के द्वार खोल देते हैं! अब स्थिति ये है कि आज ये देश मूल्यहीनता, अनैतिकता, अपसंस्कारों, अपराधों व विषमताओं सहित; अनेकों व्याधियों, समस्याओं व चुनोतियों के अनंत अंधकार में छटपटा रहा है? उस तड़प को कोई देशभक्त ही समझ सकता है! किन्तु देश की अस्मित के शत्रुओं के प्रति नम्रता का रुझान रखने वाले देश के कर्णधार इस पीढा का अनुभव करने में असमर्थ दिखते हैं!
निष्ठा में विकार- आजादी की लड़ाई में हिन्दू मुसलिम सभी वन्दे मातरम का नारा लगाते, उससे ऊर्जा पाते थे. उसमे वे भी थे जो देश बांटकर उधर चले गए, तो फिर इधर के मुसलमान वन्देमातरम विरोधी कैसे हो सकते थे ? आजादी के पश्चात अनेक वर्षो तक रेडियो टीवी पर एक समय राष्ट्रगीत, एक समय राष्ट्रगान होता था! इस सेकुलर देश के, स्वयं को "हिन्दू बाई एक्सिडेंट" कहने वाले प्रथम प्रधानमंत्री से दूसरे व तीसरे प्रधानमंत्री तक के काल में इस देश में वन्दे मातरम किसी को सांप्रदायिक नहीं लगा, फिर इन फतवों का कारण ?
इस देश की मिटटी के प्रति समपर्ण फिर कैसे कुछ लोगो को सांप्रदायिक लगने लगा? वन्देमातरम हटाने की कुत्सित चालों से किसने अपने घटियापन का प्रमाण दिया? उस समय अपराधिक चुपपी लगाने वालो को, क्यों हिन्दुत्व का समर्थन करने वालों से मानवाधिकार, लोकतंत्र व सेकुलरवाद संकट में दिखाई देने लगता है? हिन्दुत्व के प्रति तिरस्कार, कैसा सेकुलरवाद है? जब कोई जेहाद या अन्य किसी नाम से मानवता के प्रति गहनतम अपराध करता है, तब भी मानवाधिकार कुमभकरनी निद्रा से नहीं जागता? जब हिन्दू समाज में आस्था रखने वालों की आस्था पर प्रहार होता तब भी सता के मद में मदमस्त रहने वाले, कैसे, अनायास; हिन्दुत्व की रक्षा की आवाज सुनकर(भयभीत) तुरंत जाग जाते हैं? किन्तु उसके समर्थन में नहीं; भारतीय संस्कृति व हिन्दुत्व की आवाज उठाने वालों को खलनायक व अपराधी बताने वाले शब्द बाणों से चहुँ ओर से प्रहार शुरू कर देते हैं!
अभी कुछ दिन पूर्व मंगलूर में पब की एक घटना पर एक पक्षिय वक्तवयो, कटाक्षों, से उन्हें कहीं हिन्दुत्व का ठेकदार, कहीं संस्कृती का ठेकदार का रूप में, फांसीवादी असहिष्णु व गुंडा जैसे शब्दों से अलंकृत किया गया! इसलिए कि उन्हें पब में युवा युवतियों का मद्यपान व अश्लील हरकतों पर आपति थी ? संभव है, इस पर दूसरे पक्ष ने (स्पष्ट: योवन व शराब की मस्ती का प्रकोप में) उतेजनापूर्ण प्रतिकार भी किया होगा? परिणामत दोनों पक्षों में हाथापाई? ताली दोनों हाथो से बजी होगी? एक को दोषी मन व दूसरे का पक्ष लेना क्या न्यायसंगत है? जिस अपरिपक्व आयु के बच्चों को कानून नौकरी, सम्पति, मतदान व विवाह का अधिकार नहीं देता;क्योंकि अपरिपक्व निर्णय घातक हो सकते हैं; आकर्षण को ही प्रेम समझने कि नादानी उनके जीवन को अंधकारमय बना सकती है! उन्हें आयु के उस सर्वधिक संवेदनशील मोड़ पर क्या दिशा दे रहें हैं, हम लोग? जिस लोकतंत्र ने आधुनिकाओं को अपने ढंग से जीने का अधिकार दिया है, उसी लोकतंत्र ने इस देश की संस्कृति व परम्पराओं के दिवानो को उस कि रक्षा के लिये विरोध करने का अधीकार भी दिया है! माना उन्हें जबरदस्ती का अधिकार नहीं है तो तुम्हे समाज के बीच नैतिक, मान्यताओं, मूल्यों को खंडित करने का अधिकार किसने दिया? किसी की आस्था व भावनायों को ठेस पहुंचाने की आजादी, कौन सा सात्विक कार्य है?
गाँधी दर्शन- जिस गाँधी को इस देश की आजादी का पूरा श्रेय देकर व जिसके नाम से ६० वर्षों से उसके कथित वारिस इस देश का सता सुख भोग रहें है, उसकी बात तो मानेगे! उसने स्पष्ट कहा था 'आपको ऊपर से ठीक दिखने वाली इस दलील के भुलावे में नहीं आना चाहिय कि शराब बंदी जोर जबरदस्ती के आधार पर नहीं होनी चाहिये; और जो लोग शराब पीना चाहते हैं, उन्हें इसकी सुविधा मिलनी ही चाहिये! हम वैश्याल्यो को अपना व्यवसाय चलाने की अनुमति नहीं देते! इसी तरह हम चोरो को अपनी चोरी की प्रवृति पूरी करने की सुविधाए नहीं देते! मैं शराब को चोरी ओर व्यभिचार दोनों से ज्यादा निन्दनीय मानता हूँ!'
जब इस बुराई को रोकने का प्रयास किया गया तो हाथापाई होने पर जैसी प्रतिक्रिया दिखाई जा रही है, वैसी उस बुराई को रोकने में क्यों नहीं दिखाई गयी! इस बुराई को रोकने का प्रयास करने पर आज गाँधी को भी ये आधुनिकतावादी इसी आधार पर प्रतिगामी, प्रतिक्रियावादी व फासिस्ट घोषित कर देते?
इस मदिरापान से विश्व मैं मार्ग दुर्घटनाएँ होती हैं! मदिरापान का दुष्परिनाम तो महिलाओं को ही सर्वाधिक झेलना पड़ता है! इसी कारण महिलाएं इन दुकानों का प्रबल विरोध भी करती हैं! किन्तु जब प्रतिरोध भारतीय संस्कृति के समर्थको ने किया है तो उसमें गतिरोध पैदा करने की संकुचित व विकृत मानसिकता, हमे अपसंस्कृति व अनुचित के पक्ष में खड़ा कर, अनिष्ट की आशंका खड़ी करती है ??
समस्या व परिणाम- किन्तु हमारे प्रगतिशील, आधुनिकता के पाश्चात्यानुगामी गोरो की काली संताने अपने काले कर्मो को घर की चारदीवारी में नहीं पशुवत बीच सड़क करने के हठ को, क्यों अपना अधिकार समझते हैं? पूरे प्रकरण को हाथापाई के अपराध पर केन्द्रित कर, हिन्दू विरोधी प्रलाप करने वाले, क्यों सभ्य समाज में सामाजिक व नैतिक मूल्यों की धज्जियाँ उड़ाने व अपसंस्कृति फैलाने के मंसूबों का समर्थन करने में संकोच नहीं करते ? फिर उनके साथ में मंगलूर जैसी घटना होने पर सभी कथित मानवतावादी उनके समर्थन में हिन्दुत्व को गाली देकर क्या यही प्रमाण देना चाहते हैं: कि १) भारत में आजादी का पश्चात मैकाले के सपनो को पहले सेभी तीर्वता से पूरा किया जा सकता है?
२) जिस संस्कृति को सहस्त्र वर्ष के अन्धकार युग में भी शत्रुओ द्वारा नहीं मिटाया जा सका व आजादी के संघर्ष में प्रेरण हेतु देश के दीवाने गाते थे "यूनान मिश्र रोमा सब मिट गए जहाँ से, कुछ बात है कि अब तब बाकि निशान हमारा", आजाद भारत में उसके इस गौरव को खंडित करने व उसे ही दुर्लक्ष्य करने की आजादी, इस देश के शत्रुओं को उपलब्ध हो? क्या लोकतंत्र, समानता, सहिष्णुता के नाम पर ये छूट हमारी अस्मिता से खिलवार नहीं??
केवल सता में बने रहना या सीमा की अधूरी,अनिश्चित सुरक्षा ही राष्ट्रिय अस्मिता नहीं है! जिस देश की संस्कृति नष्ट हो जाती है, रोम व यूनान की भांति मिट जाता है! हमारी तो सीमायें भी देश के शत्रुओं के लिये खुली क्यों हैं? हमारे देश के कुछ भागो पर ३ पडोसी देश अपना अधिकार कैसे समझते हैं? वहां से कुछ लोग कैसे हमारी छाती पर प्रहार कर चले जाते हैं? हम चिल्लाते रह जाते हैं? देश की संस्कृति मूल्यों मान्यताओ सहित इतिहास को तोड मरोड कर हमारे गौरव को धवंस्त किया जाता है! सरकार की ओर से उसे बचाने का कोई प्रयास नहीं किया जाता! क्योंकि हम धर्म निरपक्ष है? फिर, कोई और बचाने का प्रयास करे तो उसे कानून हाथ में लेने का अपराध माना जाता है? इस देश के मूल्यों आदर्शो की रक्षा न करेंगे न करने देंगे? फिर भी हम कहते हैं कि सब धर्मावलम्बीयों को अपने धर्म का पालन करने, उसकी रक्षा करनें का अधिकार है, अपनी बात कहने का अधिकार है? कैसा कानून कैसा अधिकार व कैसी ये सरकार?
जरा सोचे- व्यवहार में देखे तो भारत व भारतीयता के उन तत्वों को दुर्लक्ष किया जाता है, जिनका संबध भारतीय संस्कृति, आदर्शो, मूल्यों व परम्पराओं से है! क्योंकि वे हिंदुत्व या सनातन परम्परा से जुड़े हैं? उसके बारे में भ्रम फैलाना, अपमानित व तिरस्कृत करना, हमारा सेकुलर सिद्ध अधिकार है?
इस अधिकार का पालन हर स्तर पर होना ही चाहिये? किन्तु उन मूल्यों की स्पर्धा में जो भी आए उसे किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने दिया जायेगा? हिन्दू हो तो, इस सब को सहन भी करो और असहिष्णु भी कहलाओ? सहस्त्र वर्ष के अंधकार में भी संस्कारो की रक्षा करने में सफल विश्व गुरु, दिन निकला तो एक शतक भी नहीं लगा पाया और मिट गया ! अगली पीडी की वसीयत यही लिखेंगे हम लोग?
इस विडंबना व विलक्षण तंत्र के कारण हम संस्कृतिविहीन व अपसंस्कृति के अभिशप्त चेहरे को दर्पण में निहारे तो कैसे पहचानेगे? क्या परिचय होगा हमारा?..
तिलक राज रेलन संपादक युग दर्पण (9911111611), (9540007993).
Friday, 12 February 2010
yug darpan bhaashaai ank
yug darpan bhaashaai ank (Desh ki mitti ki sugandh, bharat chaupal.)
युगदर्पण साप्ताहिक राष्ट्रीय समाचार पत्र हिन्दी,(sampaadak YugDarpan)
युग दर्पण साप्ताहिक राष्ट्रीय समाचार पत्र मराठी,
ਯੁਗ ਦਰ੍ਪਣ ਸਾਪ੍ਤਾਹਿਕ ਰਾਸ਼੍ਟ੍ਰੀਯ ਸਮਾਚਾਰ ਪਤ੍ਰ,
युग दर्पण साप्ताहिक राष्ट्रीय समाचार पत्र संस्कृत
yuga darpaNa saaptaahika raaShTreeya samaacaar patra eMg.
ಯುಗ ದರ್ಪಣ ಸಾಪ್ತಾಹಿಕ ರಾಷ್ಟ್ರೀಯ ಸಮಾಚಾರ್ ಪತ್ರ ಕನ್ನದ,
யுக தரப்பான சாப்டாஹிக ராஷ்ட்ரீய சமாசார் பற்ற தாதில,
യുഗ ദര്പന സാപ്ടാഹിക രാഷ്ട്രീയ സമാചാര് പത്ര
యుగ దర్పణ సాప్తాహిక రాష్ట్రీయ సమాచార్ పాత్ర
યુગ દર્પણ સાપ્તાહિક રાષ્ટ્રીય સમાચાર પત્ર ગુજ્રાતી ,
যুগ দর্পণ সাপ্তাহিক রাষ্ট্রীয সমাচার পত্র বাংগ্লা,
যুগ দর্পণ সাপ্তাহিক রাষ্ট্রীয সমাচার পত্র ওদিশী,
hindi, maraathi,gurumukhi,sankrit,kannad,tamil,
telugu, malyaalam, Gujraati, Banglaa,Odishi.
If you know any of above Language interested to join this Mission Pl contact Editor Yug Darpan Tilak
युगदर्पण साप्ताहिक राष्ट्रीय समाचार पत्र हिन्दी,(sampaadak YugDarpan)
युग दर्पण साप्ताहिक राष्ट्रीय समाचार पत्र मराठी,
ਯੁਗ ਦਰ੍ਪਣ ਸਾਪ੍ਤਾਹਿਕ ਰਾਸ਼੍ਟ੍ਰੀਯ ਸਮਾਚਾਰ ਪਤ੍ਰ,
युग दर्पण साप्ताहिक राष्ट्रीय समाचार पत्र संस्कृत
yuga darpaNa saaptaahika raaShTreeya samaacaar patra eMg.
ಯುಗ ದರ್ಪಣ ಸಾಪ್ತಾಹಿಕ ರಾಷ್ಟ್ರೀಯ ಸಮಾಚಾರ್ ಪತ್ರ ಕನ್ನದ,
யுக தரப்பான சாப்டாஹிக ராஷ்ட்ரீய சமாசார் பற்ற தாதில,
യുഗ ദര്പന സാപ്ടാഹിക രാഷ്ട്രീയ സമാചാര് പത്ര
యుగ దర్పణ సాప్తాహిక రాష్ట్రీయ సమాచార్ పాత్ర
યુગ દર્પણ સાપ્તાહિક રાષ્ટ્રીય સમાચાર પત્ર ગુજ્રાતી ,
যুগ দর্পণ সাপ্তাহিক রাষ্ট্রীয সমাচার পত্র বাংগ্লা,
যুগ দর্পণ সাপ্তাহিক রাষ্ট্রীয সমাচার পত্র ওদিশী,
hindi, maraathi,gurumukhi,sankrit,kannad,tamil,
telugu, malyaalam, Gujraati, Banglaa,Odishi.
If you know any of above Language interested to join this Mission Pl contact Editor Yug Darpan Tilak
Wednesday, 20 January 2010
Some Imp. Blogs on:- A Vast List of Subjects,intrests
देखते रहो All are on Blogspot.com
just click on Google Address Baar.
http://www.___ .blogspot.com/ सभी में रहेगा,
केवल रिक्त स्थान में भरना है जो नीचे दिया है.
भारतचौपल---, देशकीमिट्टी -- ,
प्रतिभा/प्रबधन पर राजनैतिक दुष्प्रभाव की परिणति
बिकाऊ मीडिया के बीच Mission Media./ पर
__.BharatChaupal.__DeshKiMitti__
PratibhaPrabandhanParinatiDarpan--YugDarpan--SarvaSamaachaarDarpan Current News for All.
etc./आदि भरें. दोनों ओर(.)न भूलेंSome 20 others are:-
AntarikshaDarpan___DharmSanskrutiDarpan__
GyaanVigyaanDarpan__JeevanShailyDarpan__
JeevanMelaaDarpan_KaaryaKshetraDarpan__
MahilaaGharParivaarDarpan__YuvaaDarpan__
ParyaavaranDarpan_ParyatanDharoharDarpan_
RaashtraDarpan_SamaajDarpan_ShikshaaDarpan_
SatyaDarpan__VishvaDarpan__ChetnaaDarpan_
FilmFashionClubFundaa__
(these 2 on Fundaa of FFC Glamour and Social evilsDrugs, Smoking, Drinking, Criminology, MafiA
All are कुचक्र कुसंग विकृति बिगाड़ा)Kaavyaanjalikaa__Rachnaakaarkaa__
(blog for Poety and other creative Activities)
ThitholeeDarpan_हास्य ठिठोली जीवन में आवश्यक है
किन्तु जीवन ठिठोली नहीं है, न बना दी जाए!.इस पूरी
शृंखला में भारत की सभी प्रकार की पीड़ा की अभिव्यक्ति है
आप इन सभी या इनमें से किसी भी पीड़ा को व्यक्त करने
हेतू कोई भी ब्लॉग चुन सकते हैं, लिख सकते हैं.
हमसे जुड़ने के इच्छुक ईमेल या चैट कर सकते हैं
(युगदर्पण h याहू / गूगल पर उपलब्ध है )
जीवन के हर रूप/ हर रंग/हर पक्ष के दर्द को समझने
के प्रयास में----अंतरताने पर__शृंखला २१ दर्पण +४
अन्तरिक्ष/राष्ट्र/धर्मसंस्कृति/ज्ञानविज्ञान/जीवनशैली/
जीवनमेला/महिलाघरपरिवार/पर्यावरण/पर्यटनधरोहर/
प्रतिभाप्रबंधनपरिणति/समाज/शिक्षा/सत्य/कार्यक्षेत्र/
सर्वसमाचार/ठिठोली/विश्व/चेतना/युवा एवं युगदर्पण,
भारतचौपल, देशकीमिट्टी,फ़िल्मफ़ैशनक्लबफ़ंडा,
काव्यांज्लिका,रचनाकारका.ब्लॉगस्पाट.काम की
पूरी श्रंखला प्रस्तुत है.
--युगदर्पण समाचार पत्र समूह
तिलक राज रेलन सम्पादक- युग दर्पण 09911111611, 9911145678, 9540007993,-91
just click on Google Address Baar.
http://www.___ .blogspot.com/ सभी में रहेगा,
केवल रिक्त स्थान में भरना है जो नीचे दिया है.
भारतचौपल---, देशकीमिट्टी -- ,
प्रतिभा/प्रबधन पर राजनैतिक दुष्प्रभाव की परिणति
बिकाऊ मीडिया के बीच Mission Media./ पर
__.BharatChaupal.__DeshKiMitti__
PratibhaPrabandhanParinatiDarpan--YugDarpan--SarvaSamaachaarDarpan Current News for All.
etc./आदि भरें. दोनों ओर(.)न भूलेंSome 20 others are:-
AntarikshaDarpan___DharmSanskrutiDarpan__
GyaanVigyaanDarpan__JeevanShailyDarpan__
JeevanMelaaDarpan_KaaryaKshetraDarpan__
MahilaaGharParivaarDarpan__YuvaaDarpan__
ParyaavaranDarpan_ParyatanDharoharDarpan_
RaashtraDarpan_SamaajDarpan_ShikshaaDarpan_
SatyaDarpan__VishvaDarpan__ChetnaaDarpan_
FilmFashionClubFundaa__
(these 2 on Fundaa of FFC Glamour and Social evilsDrugs, Smoking, Drinking, Criminology, MafiA
All are कुचक्र कुसंग विकृति बिगाड़ा)Kaavyaanjalikaa__Rachnaakaarkaa__
(blog for Poety and other creative Activities)
ThitholeeDarpan_हास्य ठिठोली जीवन में आवश्यक है
किन्तु जीवन ठिठोली नहीं है, न बना दी जाए!.इस पूरी
शृंखला में भारत की सभी प्रकार की पीड़ा की अभिव्यक्ति है
आप इन सभी या इनमें से किसी भी पीड़ा को व्यक्त करने
हेतू कोई भी ब्लॉग चुन सकते हैं, लिख सकते हैं.
हमसे जुड़ने के इच्छुक ईमेल या चैट कर सकते हैं
(युगदर्पण h याहू / गूगल पर उपलब्ध है )
जीवन के हर रूप/ हर रंग/हर पक्ष के दर्द को समझने
के प्रयास में----अंतरताने पर__शृंखला २१ दर्पण +४
अन्तरिक्ष/राष्ट्र/धर्मसंस्कृति/ज्ञानविज्ञान/जीवनशैली/
जीवनमेला/महिलाघरपरिवार/पर्यावरण/पर्यटनधरोहर/
प्रतिभाप्रबंधनपरिणति/समाज/शिक्षा/सत्य/कार्यक्षेत्र/
सर्वसमाचार/ठिठोली/विश्व/चेतना/युवा एवं युगदर्पण,
भारतचौपल, देशकीमिट्टी,फ़िल्मफ़ैशनक्लबफ़ंडा,
काव्यांज्लिका,रचनाकारका.ब्लॉगस्पाट.काम की
पूरी श्रंखला प्रस्तुत है.
--युगदर्पण समाचार पत्र समूह
तिलक राज रेलन सम्पादक- युग दर्पण 09911111611, 9911145678, 9540007993,-91
Subscribe to: Posts (Atom)