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Sunday, April 18, 2010

अँधेरा मिटाते नहीं फैलाते टीवी चैनल

ईटीवी के एक पूर्व स्ट्रिंगर की गाथा (क्या, यह शोषण नहीं है?)

स्ट्रिंगरों के तबादले के लिए सख्त नियम, वरिष्ठों के लिए कुछ नहीं : गलत काम न करने पर बाहर करा देते हैं वरिष्ठ : खुद दलाली के चश्मे लगाते हैं इसलिए हर शख्स में दलाल दिखता है : खबर भेजने में 200 रुपये लगते हैं, मिलते हैं ढाई सौ रुपये : स्ट्रिंगरों से फार्म भरवा लिया है कि उनका मूल धंधा पत्रकारिता नहीं, खेती है : मैं 400 किमी दूर खेती करने नहीं आया हूं : स्ट्रिंगरों की खबरें-विजुवल चुराकर अपने नाम से चलाते हैं वरिष्ठ :
     राजेश रंजन                ईटीवी मध्य प्रदेश के स्ट्रिंगरों की दुर्दशा का ध्यान प्रबंधन के साथ-साथ हिन्दी चैनल हेड को दिलाना चाहता हूं। यह सिर्फ मेरा नहीं बल्कि हर एक स्ट्रिंगर कर दर्द है। ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में स्ट्रिंगर उर्फ जिला संवाददाताओं की लगातार फजीहत हो रही है। पिछले 3 सालों में 20 से अधिक स्ट्रिगरों ने चैनल को अलविदा कह दिया है। कई स्ट्रिंगरों को या तो हटा दिया गया या उन्हें बहुत दूर ट्रांसफर कर दिया गया या तो वह खुद ही चैनल छोड़कर चले गये। सबसे हास्यास्पद पहलू यह है कि ईटीवी में स्ट्रिंगरों के थोक के भाव में ट्रांसफर होते हैं और पिछले 5 सालों मे सबसे ज्यादा प्रभावित जबलपुर सेंटर रहा है। उन्हें 2-3 साल पूरा होने पर एक जगह से दूसरी जगह कर दिया जाता है। मैनेजमेंट के इस तरह की कार्यवाही से सभी स्ट्रिंगर नाराज हैं।
जबलपुर सेंटर में जब से विश्वजीत सिंह ब्यूरो चीफ बनकर आये हैं तबसे लेकर आज तक यानि 5 वर्षों के दौरान 3 बार ट्रांसफर और सेवा समाप्ति का दौर चल चुका है। जाहिर है जो स्ट्रिंगर विश्वजीत के स्वार्थ के अनुरूप कार्य नहीं करते हैं उन्हें रिपोर्टर हेड जगदीप सिंह बैस और इनपुट हैड अरूण त्रिवेदी के साथ मिलकर तिकड़म के तहत या तो उन्हें हटा देते हैं या फिर उनका दूर कहीं ट्रांसफर करा देते हैं लेकिन इन 5 सालों में विश्वजीत जबलपुर में ही बने हुये हैं।
     स्थिति यह है कि म.प्र. में जबलपुर टीआरपी सेंटर हुआ करता था लेकिन नितिन साहनी और आलोक श्रीवास्तव के बाद से लगातार पिछड़ता गया और आज यह स्थिति है कि यहां का 2 एमबी सेंटर बंद किया जा रहा है और खबरें एफटीपी के माध्यम से भेजने के आदेश आ गये हैं। मेंनेजमैंट का तर्क होता है कि किसी भी ब्यूरो में 2 साल से अधिक कोई भी संवावदाता नहीं होगा लेकिन यह सिर्फ उनके साथ हो रहा है जो किसी के तलवे नहीं चाटते। कभी सईद खान जो चैनल हेड हुआ करते थे के खिलाफ स्ट्रिंगरों को एक सुर से भड़काने वाले जगदीप सिंह बैस, विश्वजीत और अरूण त्रिवेदी आज सब कुछ अपने मन मुताबिक चला रहे हैं क्योंकि उनका विरोध करने वाला कोई नहीं रहा।
     अब सवाल यह उठता है कि जब 2-3 साल से ज्यादा रहने का कोई प्रावधान नही हैं तो फिर जबलपुर मे विश्वजीत सिंह और भोपाल में जगदीप सिंह वैस 5 साल से कैसे जमे हुए हैं। जबकि रीवा से आलोक पण्डया को ग्वालियर, इंदौर से दिव्या गोयल को भोपाल, जबलपुर से आलोक श्रीवास्तव को रीवा और जबलपुर से ही नितिन साहनी को वाया इंदौर होते हुए भोपाल बैठा दिया गया। सबसे ज्यादा खिलवाड़ तो इंदौर के सिद्धार्थ मांछी वाल के साथ हुआ था जिन्हें एक ही साल में 4 शहरों के बाद अंततः जबलपुर भेज दिया गया था। बाद में परेशान होकर सिद्धार्थ ने इंदौर में पत्रिका ज्वाइन करना ही बेहतर समझा। इसी तरह से इंदौर के ही वीरेन्द्र तिवारी ने चैनल छोड़कर भास्कर ज्वाइन कर लिया।
     अब सवाल यह उठता है कि आखिर जगदीप सिंह बैस हैं कौन? मूलतः जबलपुर के रहने वाले जगदीप कटनी में नवभारत में कुछ हजार रूपये की नौकरी करते थे। लेकिन अचानक कांग्रेस की राजनीति में आये और प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी और कोषाध्यक्ष एन.पी. प्रजापति के नजदीकी बन गए। तभी से उनकी तरक्की के रास्ते खुलते चले गये। इसी बीच वे ईटीवी में आये और 5 साल में ही भोपाल में स्थायी तौर पर बस गए। ईटीवी चैनल ज्वाइन करने से पहले टर्म्स एण्ड कंडीशन में यह भरना अनिवार्य रहता है कि वह किसी भी राजनैतिक दल के लिए काम नहीं करेंगे, लेकिन जगदीप सिंह बैस 2009 के चुनाव में जबलपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस में अपनी दावेदारी पेश कर चुके थे और दिल्ली तक लाबिंग किया था। और अभी भी कांग्रेस के प्राथमिक सदस्य हैं। जिला स्तर के कई संवाददाताओं को इन्होंने सिर्फ इसलिए प्रताड़ित किया कि उन लोगों ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी के खिलाफ खबर भेजने का साहस दिखाया। उन प्रताड़ित संवाददाताओं में मेरा भी नाम है।
     कुछ ऐसी ही कहानी विश्वजीत की भी है। विश्वजीत पहले रायपुर में सहारा समय के स्ट्रिंगर हुआ करते थे और किसी तरह ईटीवी में घुसे थे। वे भी कांग्रेस की ही राजनीति करते हैं और उसी आधार पर स्ट्रिंगरों से भेदभाव भी करते हैं। ईटीवी में नियुक्ति का एक और मापदण्ड है कि गृह जिला में किसी भी स्ट्रिंगर या संवावदाता की नियुक्ति नहीं होगी जबकि जबलपुर में बृजेन्द्र पाण्डे उसी शहर के होने के बावजूद लगभग 2 सालों से काम कर रहा है जबकि सलीम रोहतिया जो छिंदवाड़ा का रहने वाला है उसे जबलपुर से शिवपुर ट्रांसफर कर दिया था जिसके बाद उसने चैनल छोड़ दिया।
     जबलपुर का सीमावर्ती जिला जहां मैं काम करता था, जबलपुर ब्यूरो चीफ विश्वजीत सिंह का गृह जिला है और यही कारण है कि वह जबलपुर से और कहीं जाना नहीं चाहता और वहीं से नरसिंहपुर जिले में अपने रिश्तेदारों के माध्यम से कई तरह के अवैध काम शानदार तरीके से करवा रहे हैं। उन गलत कामों को संरक्षण देने के लिए विश्वजीत का मेरे ऊपर लगातार दबाव रहता था। उसके दो कारण थे एक तो विश्वजीत स्थानीय था और मैं बिहार का रहने वाला हूं।
     अभी ग्राम पंचायत के दौरान विश्वजीत ने मुझे निर्देश दिये थे कि उनके 2 रिश्तेदार चुनाव लड़ रहे हैं और तुम जिताने के लिए अपर कलेक्टर पर दबाव बनाओ, सौदा मैं किसी भी कीमत पर करूंगा। हालांकि यह सौदा नहीं हो पाया था। इस तरह के और भी कई अनाप-शनाप निर्देशों का पालन करना मेरी मजबूरी बन गयी थी। मेरे से पहले यहां जो संवावदाता काम करते थे उन्हें भी विश्वजीत के कारण ही छिंदवाड़ा ट्रांसफर कर दिया गया था। और आज स्थिति यह है कि 31 मार्च को मेरे काम छोडऩे के बाद कोई भी स्ट्रिंगर यहां ज्वाइन करने से कतरा रहा है। आखिर ईटीवी में विश्वजीत का कौन-सा जादू चल रहा है कि 5 साल से लगातार वे जबलपुर के 2 एमबी के इंचार्ज बने हुये हैं जबकि स्थिति इतनी खराब हो गयी है कि 2 एमबी बंद करने के निर्देश आ गये हैं लेकिन अब भी विश्वजीत को नहीं हटाया गया।
     नरसिंहपुर में महिला एवं बाल विकास के सहयोग से चल रहे फर्जीवाड़ा को मेंने अन्य पत्रकारों के साथ भण्डाफोड़ किया था जो कि 18 फरवरी के सुबह 7 बजे की बुलेटिन में प्रसारित किया गया। साथ ही साधना न्यूज और टाइम टुडे में भी प्रसारित हुआ था और शहर के लगभग सभी अखबारों में यह खबर छपी थी। उस फर्जीवाड़ा में ईटीवी के जबलपुर आफिस में कम्प्यूटर आपरेटर के पद पर कार्यरत कर्मचारी की मां और भाभी सीधे तौर पर शामिल थे। तीन लाख रुपये के इस फर्जीवाड़े की खबर रोकने के लिए विश्वजीत सिंह ने मुझ पर दबाब बनाया लेकिन तब तक मैं खबर एफटीपी से भेज चुका था।
     बस, उलटे मुझ पर ही संबंधित आरोपियों से पैसे मांगने का आरोप लगाकर विश्वजीत ने कार्यमुक्त करने की सिफारिश प्रबंधन को कर दी और आनन-फानन में बगैर किसी जांच के मुझे काम करने से मना कर दिया गया। लेकिन जब हमने ईटीवी हिन्दी चैनल हेड जगदीश चंद्रा को मेल करके सारी जानकारी दी तो मेरा कार्यकाल 31 मार्च तक बढ़ा दिया गया लेकिन मैं पहले ही चैनल छोडऩे का मन बना चुका था। मैंने फिर काम शुरू नहीं किया।
फिर भी जाते-जाते चैनल में कार्यरत अन्य स्ट्रिंगरों की भलाई के लिए विश्वजीत, अरूण और जगदीप इस तिकड़ी का भंड़ाफोड़ उचित समझा। ताकि कोई भी नया पत्रकार ईटीवी मध्य प्रदेश ज्वाइन करने से पहले सच्चाई समझ ले। मैं प्रबंधन सहित विश्वजीत और जगदीप सिंह बैस को भी चैंलेज कर रहा हूं कि विश्वजीत ने जो आरोप मुझ पर लगाये हैं वह साबित कर दें तो मैं पत्रकारिता छोड़कर वापस बिहार चला जाऊंगा। इसके लिए अगर समय कम पड़ रहा है तो मैं उन्हें 5 साल तक का समय देता हूं, साथ ही जगदीप सिंह और विश्वजीत जैसे लोगों से एक बात कहना और चाहूंगा कि खुद दलाली के चश्में लगाते हैं इसलिए उन्हें हर शख्स दलाल दिखता है।
     पता नहीं, चेयरमैन को क्या रिपोर्ट मिलती है लेकिन जबलपुर 2 एमबी सेंटर को घाटे का सौदा कहा जाने लगा है लेकिन अकेले नरसिंहपुर जिले से मेंने लोकसभा, विधानसभा और विधानसभा उपचुनाव में लगभग 5 लाख रुपये दिलवा दिया था और अभी नगरपालिका चुनाव में भी एक लाख रुपये जबलपुर 2 एमबी इंचार्ज को भेज चुका हुं लेकिन मुझे यह नहीं मालूम कि यह पैसे मैंनेजमेंट तक पहुंचे या फिर रास्ते में ही गोल हो गये। जबकि नरसिंहपुर जैसे 8 और जिले जिसमें छिंदवाड़ा भी शामिल है, जबलपुर 2 एमबी सेंटर से जुड़े हुये हैं।
     स्ट्रिंगरों की परेशानी का एक और बड़ा कारण है कि उन्हें खबरें भोपाल आफिस में ब्रेक करवानी होती हैं। विजुअल एफटीपी से हैदराबाद भेजना होता है और स्क्रिप्ट निकटतम 2 एमबी में फैक्स करना होता है। कुल मिलाकर देखा जाये तो एक खबर पर लगभग 200 रुपये खर्च होता है और कंपनी 250 रुपये देती है। अगर 1-2 खबर ड्राप्ड हो गयी तो समझो बेचारा स्ट्रिंगर खबरों में घाटे में रहा और अगर कोई आवाज उठाता है तो उसे कई तरह से परेशान किया जाता है जिससे अंत में चैनल छोड़कर उसे जाना पड़ जाता है।
     स्ट्रिंगरों की समस्याएं यहीं खत्म नहीं होती हैं बल्कि उनकी शिकायत यह भी रहती है कि अक्सर भोपाल आफिस में बैठे रिपोर्टर उनकी खबरें चुरा लेते हैं। इस मामले में जगदीप सिंह नंबर एक पर हैं। दिन भर आफिस में बैठकर रद्दी छांटते रहते हैं। मेरा मतलब है कि कंप्यूटर पर बैठकर जिला संवावदाताओं के विजुअल और स्क्रिप्ट देखते रहते हैं। जैसे ही कोई खबर जंची, थोड़ी बहुत राजधानी वाली चासनी लगाकर खबरें अपने नाम कर लेते हैं।
सितंबर 09 में म.प्र. में भिंड के गोहद और नरसिंहपुर के तेंदूखेड़ा के उपचुनाव हो रहे थे, जगदीप सिंह के नाम से रोजाना 2 खबरें इन चुनावों से संबंधित होते थे। उस दौरान जगदीप सिंह न तो भिंड गये थे और न ही नरसिंहपुर लेकिन जिला संवावदाताओं के दम से उनके विजुअल स्क्रिप्ट चोरी करके खबरों पर अपना दावा कर देते थे। सिर्फ तेन्दूखेंड़ा उपचुनाव के दौरान मैंने कुल 50 खबरें भेजी थी लेकिन उनमें से आधी जगदीप सिंह के नाम से चली। यह सिर्फ मेरी नहीं, सभी स्ट्रिंगरों की शिकायत है और यही काम जबलपुर में विश्वजीत का भी है।
कानूनी पचड़ों से बचने के लिए चैनल प्रबंधन ने स्ट्रिंगरों को एक खास तरह के शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करवाया है जिस पर लिखा है कि उसका पहला काम खेती, व्यापार या अन्य है और वह पार्ट टाइम ईटीवी का पत्रकार है और घर पर रहकर ही पत्रकारिता करता हूं। मेरे पास भी इस तरह का फार्म आया था जिस पर मेरे बिहार का घर का पता छपा था और उपरोक्त बातें लिखी थीं। अब प्रबंधन को कौन बताये कि मैं 700 कि.मी. दूर बिहार से म.प्र. में कैसे काम कर सकता हूं। मैं फार्म की स्कैन काफी भी संलग्न कर रहा हूं।
मैं आपके पोर्टल के माध्यम से अपनी समस्या सभी तक पहुंचाना चाहता हूं ताकि लोगों को पता चले कि न्याय और तरक्की की बात करने वाले चैनलों के भीतर किनता अंधेरा और कितना अन्याय भरा हुआ है।
राजेश रंजन
(पूर्व) जिला संवावदाता
ईटीवी न्यूज
नरसिंहपुर
मध्य प्रदेश
(प्रबंधन से अनुरोध है इस सम्बन्ध में सत्य तक पहुँच कर हमें व जनता को अवगत कराएँ !यह उनका दायित्व भी है और उनके हित में भी है!उपरोक्त तथ्यों के लिए राजेश रंजन उत्तरदायी हैं! तिलक- संपादक)
देश की मिटटी की सुगंध, भारतचौपाल  -तिलक

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