-मयंक चतुर्वेदी
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महंत ज्ञानदास का कहना है कि स्वामी रामभद्राचार्य से रामचरित मानस को लेकर अखिल भारतीय अखाडा परिषद का कोई विवाद नहीं है। उन पर परिषद ने किसी प्रकार का जुर्माना नहीं लगाया। यह किसी षडयंत्रकारी की खुरापात है तथा हिन्दू धर्माचार्यों को बदनाम करने की साजिश है। स्वामी रामभद्राचार्य हमारे निर्विवाद जगदगुरू हैं, थे और रहेंगे। महंत ज्ञानदास ने यह भी बताया कि अखिल भारतीय अखाडा परिषद ने हरिद्वार महाकुंभ के दौरान चार जगद्गुरु घोषित किए हैं, जिनमें चित्रकूट, तुलसी पीठ पर स्वामी रामभद्राचार्य-पूर्व, स्वामी रामाचार्य-पश्चिम, हंस देवाचार्य-उत्तर तथा नरेंद्रचार्य को दक्षिण पीठ का सर्वसम्मति से पीठाधीश्वर बनाया गया है।
इस सम्बन्ध में तुलसीपीठाधीश्वर रामभद्राचार्य ने उत्पन्न विवाद पर खेद जताया है। उनका कहना है कि वे निर्विवाद जगदगुरू हैं, जगदगुरू पर कोई जुर्माना नहीं लगाया जा सकता। जो मेरी प्रतिभा को सहन नहीं कर पा रहे हैं वे लोग इस प्रकार का षड्यंत्र रच हिन्दू संतों को अपमानित करने का कार्य कर रहे हैं। मैंने मूल रामचरित मानस का एक भी अक्षर संशोधित नहीं किया, सिर्फ संपादन किया है। उन्होंने कहा कि सम्यक प्रस्तुति को संपादन कहते हैं और इसे स्वयं तुलसीदास ने रामचरित मानस के उत्तर काण्ड दोहा 130 में व्यक्त किया है। अभी तक रामचरित मानस के अनेक संपादक हो चुके हैं, किसी पर ऐसी आपत्ति नहीं की गई, जिस तरह मेरे संपादन किए जाने पर उभर कर सामने आईं हैं। उनका रामचरितमानस पर कोई विवाद नहीं। स्वामी भद्राचार्य का कहना है कि अखाडा परिषद् के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास उनके परम मित्र हैं, वे अनेक बार इस बात का खंडन कर चुके हैं कि मुझे लेकर कहीं भी कोई विवाद शेष नहीं है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, त्राण से मुक्ति के शस्त्र के रूप में समाज के काम आये या न आये; किन्तु प्रकाश के लिए जलाये दीपक से घर को जलाने को प्रशिक्षित एवम प्रतीक्षित राष्ट्र के शत्रु (वामपंथी) इनका उपयोग भली भांति जानते भी हैं व कर भी रहे हैं! इसका उपयोग समाज हित में हो व राष्ट्र के शत्रुओं पर अंकुश भी लगे हमें यह दोहरा दायित्व निभाना है! कभी विश्व गुरु रहे भारत की धर्म संस्कृति की पताका,विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये!... जय भारत --तिलक
देश की मिटटी की सुगंध, भारतचौपाल!
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